By Manoj SinghEdited By: Mohit Tripathi
Updated: Mon, 10 Jul 2023 08:55 PM (IST)
Politiocs झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड को बने 23 साल पूरे होने जा रहे हैं। नया राज्य होने की वजह से झारखंड विधानसभा को विधायिका का बहुत लंबा अनुभव नहीं है। यह बेहद जरूरी है कि विधायिका और कार्यपालिका बेहतर समन्वय और तालमेल के साथ कार्य करें ताकि आम जनता को इसका लाभ आम मिल सके।
राज्य ब्यूरो, रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड को बने 23 साल पूरे होने जा रहे हैं। नया राज्य होने की वजह से झारखंड विधानसभा को विधायिका का बहुत लंबा अनुभव नहीं है। यह बेहद जरूरी है कि विधायिका और कार्यपालिका बेहतर समन्वय और तालमेल के साथ कार्य करें, ताकि आम जनता को इसका लाभ आम मिल सके।
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उन्होंने कहा कि हम जनप्रतिनिधि चुनाव जीतकर आते हैं और सरकार बनाते हैं, लेकिन कुछ व्यवस्थाएं स्थायी तौर पर कार्य करती हैं। इन स्थायी व्यवस्थाओं एवं संस्थाओं को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए कि राज्य में सरकार है। मुख्यमंत्री ने कहा कि व्यवस्थाएं बेहतर तरीके से चलती रहें, इसके लिए चिंतन करने की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सोमवार को झारखंड विधानसभा सभागार में विधि निर्माण की प्रक्रिया एवं कार्यपालिका का दायित्व विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय प्रशिक्षण सेमिनार के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों और उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे।
विधेयक या कानून पारित न होना चिंता का विषय
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि छोटी-छोटी वजहों से किसी विधेयक या कानून का पारित नहीं होना चिंता का विषय है। देश के संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग-अलग अधिकार दिए गए हैं।
विधायिका देश एवं राज्य के लोगों के कल्याण के लिए विधेयक पारित करने, संशोधन प्रस्ताव लाने, नियम-कानून बनाने और नीति निर्धारण सहित कई कार्य करती है। कार्यपालिका सरकार के इन नियम-कानून, नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करती है। न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या एवं लोगों को न्याय प्रदान करती है।
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को सहयोगी की तरह काम करने की जरूरत
सीएम ने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं को समान सहयोगी के रूप में कार्य करने की जरूरत है। एक-दूसरे को साथ लेकर सही दिशा के साथ कार्य करनी चाहिए ताकि इसका पूरा लाभ आम जनता को मिल सके।
उन्होंने कहा कि आवश्यक है कि विधायिका और कार्यपालिका के बीच एक बेहतर समन्वय स्थापित हो, तभी सभी कार्य सुचारू एवं सुदृढ़ तरीके से पूरी हो सकेगी। जब विधायिका और कार्यपालिका के बीच समन्वय ठीक नहीं बन पाता है, तब विधानसभा के अंदर कई सवाल खड़े होते हैं।
कार्यपालिका और विधायिका का सामूहिक दायित्व: रबीन्द्र नाथ महतो
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका में अन्योनाश्रय संबंध है। भारतीय संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका का सामूहिक उत्तरदायित्व विधायिका के प्रति ही होता है।
राज्य की कार्यपालिका के प्रधान राज्य के मुख्यमंत्री सदन नेता के रूप में राज्य विधायिका का नेतृत्व भी करते हैं अर्थात इस प्रकार कार्यपालिका पृथक या बाह्य निकाय नहीं है, बल्कि लोकतंत्र में वह भी विधायिका का ही अंग है। मंत्रिपरिषद का मूल विधायिका ही है।
पहले स्तर पर स्थायी कार्यपालिका एवं सिविल सेवा, राजनीतिक कार्यपालिका एवं मंत्रिपरिषद के प्रति उत्तरदायी होता है। दूसरे स्तर पर मंत्रिपरिषद विधायिका को उत्तरदायी होती है और अंतिम एवं तीसरे स्तर पर विधायिका आम जनता के प्रति उत्तरदायी होती है, जिसमें अंतिम संप्रभुता वास करती है।
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