GST Rate में कटौती से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा, तेंदू पत्ता, बांस और आदिवासी कारीगरों को मिलेगा लाभ
झारखंड में तेंदू पत्ता बांस और आदिवासी कलाकृति से जुड़े लाखों लोगों को जीएसटी दरों में कटौती से लाभ होगा। केंद्र सरकार ने तेंदू पत्ते पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया है जबकि बांस और लकड़ी के सामान और आदिवासी कलाकृतियों पर यह दर 12% से घटकर 5% हो गई है। इससे उत्पादों की कीमतें कम होंगी और बाजार में मांग बढ़ेगी।

राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य में 70 हजार लोग तेंदू पत्ते के संग्रहण से लेकर इसके उत्पाद बनाने की प्रक्रिया से जुड़े हैं। बांस और लकड़ी के सामान बनाने वाले 1.60 लाख लोग सरकारी आंकड़ों में दर्ज हैं। आदिवासी कलाकृति के निर्माण और इसके व्यापार से 20 हजार से अधिक लोग जुड़े हैं।
जीएसटी की दरों में की गई कमी से राज्य के 2.5 लाख लोगों के लिए बाजार का विस्तार होगा। केंद्र सरकार ने जीएसटी की समीक्षा कर तेंदू पत्ता पर 28 प्रतिशत जीएसटी को कम कर 18 प्रतिशत कर दिया है।
इसी तरह बांस और लकड़ी के बने सामान के लिए 12 प्रतिशत की जगह पांच प्रतिशत जीएसटी देना होगा। आदिवासी कलाकृति पर जीएसटी की दर भी 12 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दी गई है। इससे इन उत्पादों की कीमत कम होगी और उत्पादन करने वाले कारीगरों श्रमिकों के लिए डिमांड में बढ़ोतरी होगी।
वनोपज पर जीएसटी की दर कम होने को कॉर्पोरेट अधिवक्ता प्रवीण शर्मा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी बताते हैं। उनके मुताबिक जीएसटी के नए स्लैब से श्रमिक और छोटे कारोबारी लाभ में रहेंगे। इन दिनों आदिवासी कलाकृति का आनलाइन बाजार बढ़ा है।कीमतें कम होने के बाद देसी बाजार में इनकी मांग बढ़ेगी और उत्पादन सस्ता होगा।
कच्चे माल की कीमतें भी होंगी कम
आदिवासी कलाकृति के निर्माण और ऑनलाइन बिक्री करने वाली अंशु लकड़ा जीएसटी के नए स्लैब को उत्साह बढ़ाने वाला मानती हैं।ग्रामीण कलाकारों द्वारा किए जाने वाले निर्माण में लंबा समय लगता है। ऐसे में इसकी कीमतें पहले से ज्यादा होती हैं। अब जीएसटी कम होने से कच्चे माल की कीमत कम होगी, मांग बढ़ने से उत्पाद का निर्माण ज्यादा होगा।
तमाड़ के शिवम महली बांस के फर्नीचर बनाकर रांची के बड़े शोरूम में सप्लाई करते हैं। जीएसटी की दर कम होने से उन्हें उम्मीद है कि उनके बनाए कलात्मक फर्नीचर आमलोगों की खरीद के रेंज में आएंगे।
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