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दस हजार में बनी थी देश की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र', जानें फिल्‍म की खास बातें

Raja Harishchandra. रांची प्रेस क्लब में दो दिवसीय साइलेंट एरा फिल्म फेस्टिवल का गुरुवार को समापन होगा।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 02:27 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2019 10:23 AM (IST)
दस हजार में बनी थी देश की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र', जानें फिल्‍म की खास बातें
दस हजार में बनी थी देश की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र', जानें फिल्‍म की खास बातें

रांची, जासं। फिल्मों में रुचि रखने वाले यह जानते हैं कि अपने देश में पहली फिल्म जो बनी थी, वह राजा हरिश्चंद्र थी। यह अवाक फिल्म थी। दादा साहब फाल्के ने इसका निर्माण 1913 में किया था। पर, यह नहीं पता कि यह फिल्म दस हजार में बनी थी और करीब 47 हजार रुपये की कमाई की थी। बुधवार को रांची प्रेस क्लब में दो दिवसीय साइलेंट एरा फिल्म फेस्टिवल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची की ओर से शुरू हुई। महोत्सव का उद्घाटन क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची के डॉ. अजय कुमार मिश्रा ने किया।

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महोत्सव के मुख्य अतिथि ऋषि प्रकाश मिश्र ने कहा कि आज के दौर में लोग पुरानी चीजों को भूलते जा रहे हैं। हमें अपनी संस्कृति को जानना जरूरी है। यह फिल्मोत्सव हमारे उस दौर की याद दिलाता है। तब महिला पात्रों के लिए भी पुरुष ही होते थे।

अवाक फिल्मों के बारे में मुंबई  के प्रख्यात फिल्म निर्माता व पत्रकार डॉ. सुरेश शर्मा ने जानकारी दी। डॉ. सुरेश शर्मा, हिंदी साहित्य, पत्रकार और फिल्म समीक्षक हैं। रघुवीर सहाय रचनावली, बेनीपुरी ग्रंथावली, प्रभाष जोशी की पांच किताबों का संपादन किया है। फिल्म क्रिटिक का नेशनल अवार्ड भी प्राप्त हुआ। डॉ शर्मा ने बताया कि 1913 में राजा हरिश्चंद्र देश की पहली अवाक फिल्म है। मई में इसका प्रदर्शन हुआ। उस समय दस हजार में बनी थी और 47 हजार रुपये की कमाई हुई थी। यह फिल्म क्राइस्ट की प्रेरणा से बनाई थी।

दूसरी फिल्म कालिया मर्दन थी। इसमें फाल्के की छह साल की बेटी मंदाकिनी फाल्के ने कृष्ण का अभिनय किया था। यह बीस हजार रुपये में बनी थी और एक लाख दस हजार की कमाई हुई थी। हर फिल्म के इतिहास, निर्माण, अभिनय आदि के बारे में भी डॉ सुरेश शर्मा प्रदर्शन से पहले बताते जाते थे। बाद में संवाद का भी एक सत्र चला। श्री कृष्ण जन्म (1918)दूसरी फिल्म थी, जिसमें भगवान कृष्ण के जन्म और उत्थान का प्रदर्शन किया गया था।

इसके बाद, कालिया मर्दन (1919)को प्रदर्शित किया गया, जहां लीला या दैवीय नाटक के प्रसंग सुनाए गए। दोनों फिल्मों का निर्देशन और पटकथा दादासाहेब फाल्के ने की है। जमाई बाबू (1931) अगली फिल्म थी। नाटेर पूजा (1932)थी, जो दिन की आखरी फिल्म थी। पांच फिल्मों की स्क्रीनिंग के बाद, प्रतिभागियों के साथ बातचीत सत्र का संचालन डॉ. सुरेश शर्मा ने किया। सत्र में प्रतिभागियों को फिल्मों के महत्वपूर्ण विश्लेषण और साइलेंट फिल्म्स की तकनीक केबारे में बताया। क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अजय कुमार मिश्रा ने धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा, दिनेश सिंह के अलावा करीब डेढ़ सौ छात्र-छात्राएं थीं।

आज की फिल्में

द लाइट एंड पैशन आफ जीसस क्राइस्ट-1903-19 मिनट

जमाई बाबू-1931-23 मिनट

लंका दहन 1917, पांच मिनट

शिराज-1928- एक घंटा 24 मिनट

नोतिर पूजा-1932, 32 मिनट


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