Jharkhand News: बंदूकें छोड़ नीली क्रांति में जुटे माओवादी, लिख रहे खुशहाली की नई कहानी
गुमला जिले में ज्योति लकड़ा जैसे पूर्व माओवादी हिंसा छोड़कर मछली पालन में किस्मत आजमा रहे हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाइ) के तहत उन्हें लाभ हुआ है। ईश्वर गोप सरकारी तालाब से मछली बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं जबकि लाखन सिंह धान की खेती छोड़कर मछली पालन कर रहे हैं। इस योजना से स्थानीय रोजगार बढ़ा है और पलायन कम हुआ है जिससे क्षेत्र में खुशहाली आई है।

जागरण संवाददाता, रांची। झारखंड के उग्रवाद प्रभावित रहे गुमला जिले के बसिया प्रखंड के गम्हरिया गांव निवासी 41 वर्षीय ज्योति लकड़ा वर्ष 2002 में वामपंथी उग्रवाद छोड़ने से पहले माओवादी समूह का हिस्सा थे। आज वह अपने गांव में एक मछली चारा मिल चलाते हैं।
उन्हें केंद्र की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाइ) के तहत पिछले वर्ष आठ लाख रुपये का शुद्ध लाभ हुआ है। पूर्व माओवादी ओम प्रकाश साहू भी यहां छह मछली तालाबों का संचालन करते हैं और सालाना 40 क्विंटल मछली पकड़ते हैं।
गुमला में ज्योति और ओमप्रकाश जैसे कई पूर्व माओवादी हिंसा का रास्ता छोड़ मछली पालन से अपनी किस्मत संवार रहे हैं। बंदूक छोड़कर मत्स्य पालक बने इन लोगों की सफलता यह दर्शाती है कि कैसे लक्षित विकास कार्यक्रम उग्रवाद के लिए आर्थिक विकल्प प्रदान कर सकते हैं तथा क्षेत्र में व्यापक आतंकवाद-रोधी प्रयासों में योगदान दे सकते हैं।
42 वर्षीय ईश्वर गोप ने तीन वर्ष की अवधि के लिए 1,100 रुपये के पट्टे पर सरकारी तालाब लिया है। वह वहां से प्रतिवर्ष ढाई लाख रुपये मूल्य की आठ क्विंटल मछलियां पकड़ कर बेचते हैं। इससे उन्हें एक लाख 20 हजार रुपए का लाभ हो जाता है।
गांव के 51 वर्षीय लाखन सिंह भी माओवादी समर्थक थे। उनके पास 150 एकड़ जमीन थी। मछली पालन के फायदे देखे तो वह अब धान की खेती छोड़कर अपनी जमीन पर बने पांच तालाबों में मछली पालन करने लगे हैं।
हिंसा छोड़ बन गए कमाने वाले किसान
केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त कार्यान्वयन के साथ 2020-21 में शुरू की गई पीएमएमएसवाइ योजना ने गुमला जिले में चार वर्षों में 157 व्यक्तिगत लाभार्थियों को प्रशिक्षित किया है। जिला मत्स्य अधिकारी कुसुमलता के अनुसार, जिले में मछली पालन में लगे नौ हजार परिवारों में से लगभग 25 प्रतिशत पहले माओवादी या माओवादी समर्थक थे।
उनसे संपर्क कर उन्हें मछली पालन के लिए प्रेरित किया गया। बंदूक छोड़ने वाले लोग अब आत्मनिर्भरता और खुशहाली की नई कहानी लिख रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यह योजना स्थानीय रोजगार सृजन में कई गुना अधिक प्रभावी साबित हुई। लोगों की आमदनी बढ़ी तो क्षेत्र से पलायन को कम करने में भी मदद मिली है।
प्रशिक्षण हासिल करके दूसरों को भी जोड़ा
ज्योति लकड़ा गांव के मछली पालकों को अपनी मिल के जरिए कम कीमत में चारा उपलब्ध कराते हैं। ज्योति के अनुसार, यहां के मछली पालकों को पहले पता भी नहीं था कि मछली को दाना भी देना पड़ता है। जब वह मछली पालन का प्रशिक्षण प्राप्त कर गांव पहुंचे तो उन्होंने गांव के लोगों को उन्नत तरीके से मछली पालन के लिए प्रोत्साहित किया।
इसके बाद गांव के कई लोग साथ आए। इससे मछली का उत्पादन बढ़ा और लोगों की आमदनी भी बढ़ने लगी। ज्योति लकड़ा ने गांव वालों को ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए मछलियों को चारा खिलाने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद ज्योति ने गांव में मछली चारा मिल स्थापित करने की योजना बनाई। गांव में मछली चारा मिल स्थापित करने के लिए उन्हें 18 लाख रुपये का अनुदान मिला है। शेष रकम उन्होंने मछलियां बेचकर प्राप्त हुई आमदनी से खर्च की।
2009 में मुग्धा टोप्पो ने की थी शुरुआत
बसिया में मछली पालन की मुहिम वर्ष 2009 में तत्कालीन राज्य मत्स्य विस्तार अधिकारी मुग्धा कुमार टोप्पो ने की थी। उस वक्त इलाके में माओवादियों की हिंसक गतिविधियां चरम पर थीं। इस दौरान टोप्पो ने यहां के 50 से ज़्यादा परिवारों से बात करने के बाद यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था।
माओवादी ओमप्रकाश साहू इस अभियान में सहयोग के लिए आगे आए। ओम प्रकाश साहू भी वर्ष 2007 तक सक्रिय माओवादी थे, लेकिन अब छह मछली तालाबों का संचालन करते हैं।
कुछ महीने पहले ही नक्सलमुक्त घोषित हुआ है गुमला
हाल के वर्षों में सुरक्षा बल के प्रभावी अभियानों के कारण इस क्षेत्र में वामपंथी उग्रवाद पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया। मई 2025 में गुमला जिले को रांची जिले के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय की माओवाद प्रभावित क्षेत्रों की सूची से हटा दिया गया।
अब यहां हालात पहले से अलग हैं। लोग अपने काम-धंधे, पढ़ाई तथा विकास के कार्यों में जुटे नजर आते हैं। इससे यहां की आर्थिक स्थिति में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। इसके साथ ही, इससे क्षेत्र के कई लोग भी जुड़ रहे हैं।
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