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    देवी के आगमन का एहसास करा रही काश के फूलों की अठखेलियां, बंगाल में दुर्गापूजा में है खास महत्‍व Koderma News

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Mon, 28 Sep 2020 08:44 AM (IST)

    Jharkhand News काश फूल एक तरह की घास की प्रजाति है। आयुर्वेद में इसका कई रोगों में औषधीय महत्व है। साहित्य में काश फूल का बड़ा ही प्रभाव है। इसका कारण भी है। शरद ऋतु को साहित्य में काफी स्थान जो दिया गया है।

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    कोडरमा में खुले मैदान में लहलहाते कांस के फूल।

    कोडरमा, जासं। आसमान में छाये सफेद बादलों के साथ धरती पर चारों तरफ फैले सफेद काश (कांश) के फूल इन दिनों देवी (शारदीय नवरात्र) के आगमन का एहसास करा रही हैं। इन दिनों जहां भी नजर दौड़ाएं, लंबे-लंबे काश के फूल मंद-मंद बहती हवाओं के साथ अठखेलियां करते मन को ऐसे प्रफुल्लित करते हैं, मानों पूरी प्रकृति देवी दुर्गा के स्वागत को आतुर हो रही हों।

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    दरअसल, वर्षा ऋतु के समापन एवं शरद ऋतु के आगमन के दौरान ऊंचे पहाड़ी इलाकों, खेतों की मेढ़ों व नदियों के तट पर काश के फूल लहराते नजर आते हैं। काश फूल नदी किनारे जलीय भूमि, बलूई सूखे इलाकों, पहाड़ी एवं ग्रामीण क्षेत्र में टीले रूपी हर स्थानों पर देखे जा सकते हैं। लेकिन नदी के तटीय इलाकों में काश फूल ज्यादा उगते हैं। काश फूल एक तरह की घास की प्रजाति है।

    आयुर्वेद में इसका कई रोगों में औषधीय महत्व है। शरद ऋतु के आगमन पर जब नीले आसमान में सफेद बादल अठखेलियां करते हैं तब धरा में सफेद काश फूल हौले-हौले हिलते हुए अपने अस्तित्व को बयां करते हुए ऐसे इतराते हैं मानो धरती व आसमान सादगी से नहा उठा हों। शरद ऋतु के वर्णन में तो कवि कल्पनाओं की उज्जवलता देखते ही बनती है।

    इसीलिए तो महाकवि कालिदास अपने ऋतुसंहार महाकाव्य में शरद ऋतु के वर्णन में कहते हैं- शरद ऋतु का पदार्पण रमणीय नववधू के समान होता है। पके हुए धान से सुंदर एवं झुकी बालियां तथा खिले हुए कमलों के मुख वाली शरद ऋतु, काश पुष्प का उज्जवल वस्त्र धारण किए हुए मतवाले हंसों के कलरवों का नुपूर पहने हुए अवतरित होती है। कवि ने काशफूल को नववधू के वस्त्र परिधान के रूप में देखा है।

    साहित्य में काश फूल का बड़ा ही प्रभाव है। इसका कारण भी है। शरद ऋतु को साहित्य में काफी स्थान जो दिया गया है। बांग्ला साहित्य में दुर्गापूजा और शरद ऋतु का एक विशेष महत्व है, जो काशफूल के बिना अछूता है। कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर अपने ''शापमोचन'' नृत्य नाट्य की रचना में काश फूल के संबंध में कहते हैं- यह मन की कालिमां दूर करती है, शुद्धता लाती है, भय दूर कर शांति वार्ता वहन करती है। शुभ कार्य में काश फूल के पत्ते और फूल का उपयोग किया जाता है।

    कवि काजी नज़रुल इस्लाम अपनी कविता में कहते हैं- काश फूल मन में सादगी का सिहरन जगाए, मन कहता कितना सुंदर प्रकृति..., सृष्टिकर्ता की अपार सृष्टि...। प्राचीन काल से लेकर आज के नए कवि और साहित्यकार सभी ने काश फूल का बखूबी वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। बंगाल के दुर्गापूजा में काश के फूल को खास महत्व दिया जाता है। यहां दुर्गापूजा से संबंधित कोई भी रचनाएं, पुस्तिकाएं या विज्ञापन ही क्यों न हो, इसमें माता की तस्वीर के साथ काशफूल और ढाकी अवश्य होती है।