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    Ram Dayal Munda: झारखंड के बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलन के प्रणेता थे डा. रामदयाल मुंडा, जयंती पर पढ़ें विशेष

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Sun, 22 Aug 2021 07:04 PM (IST)

    Ramdayal Munda Jharkhand News Hindi Samachar डा. राम दयाल मुंडा ने भारत के आदिवासी आंदोलन को आगे बढ़ाया। झारखंड में सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रांति का बिगुल फूंका। वे दो भाषाओं नागपुरी और मुंडारी में गीत लिखते थे।

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    Ramdayal Munda, Jharkhand News, Hindi Samachar डा. राम दयाल मुंडा ने भारत के आदिवासी आंदोलन को आगे बढ़ाया।

    रांची। अलग राज्‍य के लिए झारखंड आंदोलन के मध्यकाल में जब क्रांति उग्र और हिंसक रूप ले चुकी थी, तब तत्कालीन सरकारें इसे अस्वीकार करने से लेकर दबाने तक में लगीं थीं। तब बौद्धिक और बहुत हद तक सांस्कृतिक वर्ग इससे जुड़ने से बचता था। 1980 में अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान के व्याख्याता के आकर्षक पद को छोडकर रांची आए डा. रामदयाल मुंडा ने इसे समझा और छोटानागपुर राज परिवार के दामाद, आइएएस अधिकारी और लेखक डा. कुमार सुरेश सिंह के सहयोग से जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना कराई। इसमें तत्कालीन दक्षिण बिहार की उपेक्षित नौ भाषाओं की पढ़ाई पहली बार शुरू हुई।

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    डा. मुंडा के नेतृत्व में डा. बीपी केशरी, डा. गिरिधारी राम गौंझू, डा. बीपी पिंगुआ और डा. कुमारी बासंती जैसे विद्वानों ने इस विभाग को ऊंचाई प्रदान की। आजसू के संस्थापक सूर्य सिंह बेसरा तब विभाग के छात्र हुआ करते थे। एक पुरानी बुलेट मोटरसाइकिल में शॉर्ट कुर्ता और जींसधारी लंबे बालों वाले विलक्षण प्रतिभावान व्यक्ति डा. मुंडा को पहचानने वाले लोग कम ही थे। राम दयाल ने जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना अपने अथक प्रयासों से की। तब डा. बीपी केशरी, कुमार सुरेश सिंह, गिरिधारी राम गौंझू और डा. कुमारी बासंती जैसे विद्वानों और संस्कृति प्रेमियों के साथ मिलकर उन्‍होंने एक अलख जगाई।

    यह आज भी रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सार्वजनिक त्योहारों सरहुल और कर्मा में देखने को मिलता है, जब सभी नौ भाषाओं के लोग पद और आर्थिक पृष्ठभूमि की चिंता किए बगैर एक अखरा में इकठ्ठा होते हैं। पहिल पिरितिया उनका प्रसिद्ध गीत है और दर्जनों बांसुरियों की मीठी तान से लोग खींचे चले आते थे। उनपर भारत सरकार के फिल्म्स डिवीजन ने नाची से बांची फिल्म बनाई है, जो उनकी विचारधारा थी। फिल्मकार मेघनाथ उन्हें झारखंड का टैगोर मानते हैं। मैं मानता हूं कि डा. राम दयाल मुंडा झारखंड के रवींद्रनाथ टैगोर थे।

    जिस तरह टैगोर ने सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति के लिए बिगुल बजाया था, उसी तरह डा. मुंडा ने भारत के आदिवासी आंदोलन को आगे बढ़ाया। झारखंड में सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक क्रांति का बिगुल फूंका। वे दो भाषाओं नागपुरी और मुंडारी में गीत लिखते थे। वे तमाड़ के पास के गांव के थे। पंचपरगनिया और कुरमाली सहित कई विदेशी भाषाओं पर उनकी पकड़ थी। 90 के दशक के अंत में भारत सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी ऑन झारखंड मैटर के वे प्रमुख सदस्य थे।

    उसी दौरान उन्होंने द झारखंड मूवमेंट रेट्रोसपेक्ट एंड प्रोस्पेक्ट नामक आलेख लिखा। वे रांची विश्वविद्यालय के कुलपति और राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 23 अगस्त 1939 को तमाड़ के दिउडी में जन्मे डा. मुंडा की 30 सितंबर 2011 को कैंसर से असामयिक मृत्यु के साथ ही झारखंड की जनजातीय क्षेत्रीय समाज का सपना अधूरा रह गया।

    लेखक- सुनील बादल, आकाशवाणी रांची से सेवानिवृत्त वरिष्ठ पत्रकार।