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    Jharkhand News: रांची में बढ़ा कुत्तों का आतंक, रोजाना अस्पताल में आ रहे 300 केस; स्थानीय लोगों में खौफ

    झारखंड की राजधानी रांची में कुत्तों का आतंक लगातार बढता जा रहा है। राजधानी के सदर अस्पताल में रोजाना 300 केस सामने आ रहे हैं। वहीं काउंटर पर वैक्सीनेशन करवाने वालों की भीड़ लग रही है। बताया जा रहा है कि इनमें से सबसे ज्यादा महिलाओं और बच्चों की संख्या है। पिछले दस साल में एक लाख से ज्यादा कुत्तों का बंध्याकरण किया गया है।

    By Rajesh PathakEdited By: Shashank ShekharUpdated: Wed, 22 Nov 2023 09:27 PM (IST)
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    रांची में बढ़ा कुत्तों का आतंक, रोजाना अस्पताल में आ रहे 300 केस; स्थानीय लोगों में खौफ

    जागरण संवाददाता, रांची। राजधानी रांची में आवारा कुत्तों का आतंक दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सदर अस्पताल में प्रतिदिन आवारा कुत्तों के काटने से संबंधित लगभग 300 मामले आ रहे है। एंटी रैबीज काउंटर पर भी प्रतिदिन टीकाकरण कराने वालों की लंबी लाइन लग रही है।

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    इनमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं व बच्चों की है। 2013 में राजधानी में पायलट प्रोजेक्ट के तहत रांची नगर निगम ने होप एंड एनिमल ट्रस्ट को कुत्तों के बंध्याकरण व टीकाकरण की जिम्मेदारी दी थी। हालांकि, नगर निगम के पास शहरी क्षेत्र में मौजूद आवारा कुत्तों का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है।

    पिछले दस सालों में ट्रस्ट की ओर से एक लाख चार हजार आवारा कुत्तों का बंध्याकरण किया गया है। ट्रस्ट की ओर से प्रतिदिन लगभग 10 व प्रतिमाह 250 से लेकर 300 आवारा कुत्तों का बंध्याकरण किया जाता है।

    ट्रस्ट के पास दो डाग कैचर वाहन हैं। किसी भी गली-मोहल्ले से शिकायत मिलने पर बाद ट्रस्ट की टीम संबंधित इलाके से आवारा कुत्ता को पकड़ती है। इसके बाद आपरेशन कर उसका बंध्याकरण किया जाता है। फिर उस कुत्ता को उसी इलाके मेें छोड़ दिया जाता है।

    ये हैं रेबीज के लक्षण

    एक्सपर्ट के अनुसार सिर्फ पागल कुत्ता के काटने से ही रेबीज नहीं होता। सामान्य कुत्ता भी काट ले और संबंधित व्यक्ति एंटी रेबीज का इंजेक्शन न ले तो उसे रेबीज हो सकता है।

    रेबीज होने पर चिड़चिड़ापन, बुखार आना, मुंह से लार निकलना, पानी पीने के दौरान गर्दन व छाती की मांसपेशियों में संकुचन होना, हवा के झोंके से झटका लगना या मांसपेशियों का जकड़ना आदि लक्षण दिखाई दे तो समझना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति को रेबीज हो चुका है।

    ऐसी परिस्थिति में 5 से 6 दिनों में मौत हो जाती है। दुनिया में इसका कोई इलाज नहीं है। सिर्फ बचाव ही इसका इलाज है। इसलिए पालतू कुत्तों को भी हर साल एंटी-रेबीज वैक्सीन देनी पड़ती है।

    इन मोहल्ले में कुत्तों का आतंक

    हिनू, कोकर, हरमू, अशोक नगर, एचईसी, हरमू मुक्तिधाम, हिंदपीढ़ी, डोरंडा, कर्बला चौक, डंगराटोली, मोरहाबादी, पीपी कंपाउंड, बूटी मोड़ इत्यादि

    पालतू कुत्तों को चेन से बांधकर रखें। लिफ्ट, पार्क व ओपन प्लेस में कुत्तों को लेकर न जाएं। आवारा कुत्तों को देखकर रिस्पांस न करें। वाहन का पीछा करने पर गाड़ी तेज न भगाएं। कुत्ता काट ले तो तुरंत टीकाकरण कराएं।- डॉ. सुशील प्रसाद, वेटनरी कॉलेज, बीएयू।

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