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    रांची में रेलवे ट्रैक पर हाथी की दर्दनाक मौत के बाद केंद्र सरकार ने लिया अहम फैसला, अब करने जा रही यह काम

    Updated: Sun, 06 Apr 2025 05:55 PM (IST)

    रेलवे ट्रैक पर हाथियों की मौत को रोकने के लिए झारखंड में डिजिटल निगरानी शुरू हो रही है। देहरादून स्थित वन्य जीव संरक्षण संस्थान ने इसके लिए दक्षिण अफ़्रीका में प्रयोग की जा रही तकनीक का आकलन कर झारखंड में भी लागू करने की योजना बनाई है। हाथियों के आने-जाने के लिए कारिडोर चिह्नित किए गए हैं। यहां रेलवे लाइन पर डिजिटल सर्विलांस लगाए जाएंगे।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य में रेलवे ट्रैक पर आने से हाथियों समेत अन्य जीवों की दर्दनाक मौत अक्सर होती रहती है। हाल ही में रांची के समीप किता में रेल लाइन पार कर रहे एक हाथी की मौत हो गई।

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    केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रेलवे लाइन से होकर गुजरने वाले हाथियों की निगरानी के लिए डिजिटल निगरानी का निर्णय लिया है।

    देहरादून स्थित वन्य जीव संरक्षण संस्थान ने इसके लिए दक्षिण अफ़्रीका में प्रयोग की जा रही तकनीक का आकलन कर झारखंड में भी लागू करने की योजना बनाई है।

    राज्य में हाथियों के आने-जाने के लिए कॉरिडोर चिह्नित किए गए हैं। यहां रेलवे लाइन पर डिजिटल सर्विलांस लगाए जाएंगे।

    रेलवे लाइन के दो किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों के आने पर यह संबंधित स्टेशन के कंट्रोल रूम को सूचना भेज देगा। इसके बाद वहां से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार कम रखने का निर्देश दिया जाएगा।

    हाथियों को रेलवे ट्रैक पर आने से रोकने की कोशिश भी होगी। रांची से हजारीबाग के रास्ते पटना जाने वाली रेल लाइन पर हाथियों के गुजरने की हमेशा संभावना रहती है।

    केंद्र सरकार सबसे पहले इस लाइन पर यह प्रयोग करने की योजना बना रही है। इसके लिए रेलवे और संबंधित वन प्रमंडल के बीच समन्वय केंद्र भी बनाए जाएंगे।

    तकनीकी के प्रयोग से हो रहा वन्यजीवों का संरक्षण

    वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन प्रोजेक्ट से जुड़े केंद्र सरकार के विशेषज्ञों का एक दल राज्य में एलिफेंट कारिडोर पर मौजूद रेल ट्रैक का अध्ययन करेगा।

    प्रोजेक्ट के रिसर्च एसोसिएट सुकोमल दत्ता ने बताया कि झारखंड में हर साल 12 से 20 हाथियों की मौत रेल ट्रैक पर होती है।

    दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में डिजिटल सेंसर से हाथियों की मौत पर नियंत्रण पाया गया है। राज्य में भी यह प्रयोग वन्य जीवों की जान बचाने में मददगार साबित होगा।

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