Jharkhand में 277 करोड़ रुपये खर्च, फिर भी बाघ भूखा... सीएजी की रिपोर्ट ने खोले राज
झारखंड में मात्र एक बाघ है। बाघों के संरक्षण पर 277.70 करोड़ रुपये खर्च हुए लेकिन बाघ बचाए नहीं जा सके। इतनी राशि खर्च होने के बाद भी यहां बाघ लगभग विलुप्त हो गया है। पलामू ब्याघ्र परियोजना (पीटीआर) में वर्ष 2022 में केवल एक बाघ पाया गया जबकि पूरे भारत में बाघों की संख्या बढ़ी है। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
राज्य ब्यूरो, रांची । झारखंड में महज एक बाघ है। बाघों के संरक्षण पर 277.70 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन बाघ बचाए नहीं जा सके। इतनी राशि खर्च होने के बाद भी यहां बाघ लगभग विलुप्त हो गया है।
पलामू ब्याघ्र परियोजना (पीटीआर) में वर्ष 2022 में केवल एक बाघ पाया गया, जबकि पूरे भारत में बाघों की संख्या बढ़ी है। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2005 के बीच पीटीआर में 34 से 46 बाघ थे, लेकिन इसके बाद इसकी संख्या में लगातार कमी आती गई और यह घटकर एक हो गई।
दूसरी तरफ, पूरे देश में इस दौरान बाघों की संख्या 1,411 से बढ़कर 3,682 हो गई। सीएजी की जांच में यह बात सामने आई कि यहां बाघों की संख्या में कमी के पीछे महत्वपूर्ण कारणों में बाघों के लिए आहार उपलब्धता की कमी थी।
हिरण, जंगली सुअर, बंदर और लंगूर की संख्या में भी कमी
पीटीआर में बाघों के लिए आहार उपलब्धता 2012-13 में 85666 से घटकर 2022-2 में 4,411 हो गई। रिपोर्ट में झारखंड के संरक्षित क्षेत्रों में हिरण, जंगली सुअर, बंदर और लंगूर की संख्या में भारी कमी आने की भी बात कही गई है।
मुख्य रूप से तोपचांची, पारसनाथ, पीटीआर-पलामू, कोडरमा और गौतम बद्ध संरक्षित क्षेत्रों में इनकी संख्या में काफी कमी आई। वन्य जीवों की संख्या में इसलिए भी कमी आई। क्योंकि जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित व अछूते स्थान का निर्माण नहीं किया गया।
मांसाहारी जानवरों के शिकार में कमी और शाकाहारी जानवरों के लिए पर्याप्त चारागाह की व्यवस्था नही की गई। बाघों की संख्या घटने का यह प्रमुख कारण है।
जंगली जानवरों की गणना में वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में वर्ष 2017-18 में वन्य जीवों की कुल संख्या 20,028 थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 19,882 हो गई।
वर्ष 2018-19 में जंगली जानवरों की संख्या में 7,660 की कमी पाई गई। यह कमी कुल जंगली जानवरों में 38 प्रतिशत की थी। हालांकि 2020-21 में जंगली जावरों की संख्या में 64 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
कुल 7,778 जंगली जानवर बढ़े। सीएजी के अनुसार, आंकड़ों में व्यापक उतार-चढ़ाव इस बात की संभावना को दर्शाता है कि वन एवं पर्यावरण विभाग ने ट्रांसेक्ट वाक और वाटरहोल डेटा रिकार्डिंग के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों के सत्यापन के लिए वैज्ञानिक जनगणना तंत्र जैसे थर्ड आई निगरानी, स्कैट विश्लेषण, फुटमार्क सर्वेक्षण आदि को नहीं अपनाया था।
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