यहां गोबर के कंडे से शुरू होता है मोक्ष का सफर, लकड़ी की बचत के साथ पर्यावरण संरक्षण भी Dhanbad News
Dhanbad News Jharkhand Samachar धनबाद के झरिया में मुक्तिधाम में शवों के दाह-संस्कार के लिए लकड़ी की जगह गोबर के कंडे का प्रयोग किया जाता है। चिता की आग में गोबर के कंडे जलाने से कोई नुकसानदायक गैस भी नहीं निकलती है।

झरिया (धनबाद), [गोविन्द नाथ शर्मा]। धनबाद के झरिया इलाके में गोबर के कंडों से दाह संस्कार करने की परंपरा है। कोरोना काल में मौत का आंकड़ा बढ़ा तो बड़ी संख्या में शव जलाए जाने लगे। इससे कंडों की भी खपत बढ़ गई है। समाजसेवी इसे निशुल्क उपलब्ध करा रहे हैं। वहीं इसका उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया गया है। मशीन से कंडे बनाए जा रहे हैं। झरिया के 100 वर्ष पुराने बस्ताकोला स्थित झरिया-धनबाद गौशाला मुक्तिधाम में गोबर के कंडे से मोक्ष का सफर जारी है।
वैश्विक महामारी कोरोना की चपेट में आने से इन दिनों यहां के मुक्तिधाम में शवों के आने की संख्या तिगुनी हो गई है। एक वर्ष पूर्व मुक्तिधाम में हर माह लगभग 20-25 शव दाह-संस्कार के लिए आते थे। कोरोना की दूसरी लहर में इसकी संख्या 70-75 हो गई है। पिछले वर्ष कोरोना वायरस को देखते हुए गौशाला कमेटी ने गोबर के कंडे को बनाने की गति बढ़ा दी थी। इस कारण यहां आने वाले सभी शवों का दाह संस्कार गोबर के कंडे से ही किया जा रहा है। शवों के दाह-संस्कार में यहां लकड़ी का प्रयोग नहीं किया जा रहा है।
तीन साल पूर्व समाजसेवी राधेश्याम ने दी थी कंडा बनाने की मशीन
झरिया के प्राचीन गौशाला में गोबर का कंडा बनाने का काम तीन साल से हो रहा है। गौशाला से जुड़े समाजसेवी राधेश्याम गुप्ता ने पर्यावरण संरक्षण के लिए लकड़ी की जगह गोबर के कंडे से शवों को जलाने के लिए गोबर कास्ट मशीन दान में दी थी। इसके बाद यहां गोबर का कंडा बनाने का काम शुरू हुआ। अभी गौशाला में दो मशीनें कंडा बनाने में लगी हैं। एक मशीन में आठ कर्मी कार्य करते हैं। हर दिन लगभग एक हजार कंडे का निर्माण होता है। एक कंडा का वजन एक किलो से कुछ अधिक होता है। एक शव को जलाने में ढाई-तीन सौ कंडे लगते हैं। गौशाला कमेटी इसे लोगों को उपलब्ध करा रही है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अच्छा है गोबर कंडा से शवों का दाह संस्कार
झरिया-धनबाद गौशाला के वर्तमान अध्यक्ष महेंद्र कुमार अग्रवाल, सचिव द्वारिका गोयनका, मुरलीधर पोद्दार और प्रबंधक मुन्ना पांडेय का कहना है कि गोबर के कंडे और कपूर से शवों के दाह संस्कार से प्रदूषण नहीं फैलता है। तीन-चार घंटे में आसानी से शव का बिना परेशानी के दाह-संस्कार हो जाता है। चिता की आग में गोबर के कंडे जलाने से कोई नुकसानदायक गैस भी नहीं निकलती है, बल्कि यह वातावरण के लिए अच्छा माना जाता है। इसलिए गौशाला में शवों के दाह-संस्कार के लिए गोबर के कंडे के उपयोग को और बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया है।
कोरोना काल में गोबर के कंडे की डिमांड बढ़ी
कोरोना काल में धनबाद और झरिया में लोगों की मृत्यु दर बढ़ने से गोबर के कंडे की डिमांड भी काफी बढ़ गई है। बस्ताकोला गौशाला के मुक्तिधाम में शवों के दाह संस्कार के लिए गोबर के कंडे का प्रयोग तो होता ही है, बाहर में भी इसकी डिमांड काफी बढ़ गई है। मटकुरिया स्थित धनबाद गौशाला मुक्तिधाम में भी यहां से गोबर के कंडे को भेजा जाता है। इसकी डिमांड बढ़ने से गौशाला समिति की ओर से मटकुरिया में भी एक गोबर कास्ट मशीन लगाने का निर्णय लिया गया है। अगले कुछ दिनों में वहां मशीन स्थापित कर गोबर के कंडे को बनाने का काम शुरू किया जाएगा।
ऐसे बनता है शवों को जलाने वाला गोबर का कंडा
झरिया-धनबाद गौशाला के प्रबंधक मुन्ना पांडेय बताते हैं कि यहां के गौशाला में सैकड़ों गायें हैं। इसलिए गोबर का कंडा बनाने में परेशानी नहीं होती है। गोबर को दो दिनों बाद कुछ सूखने पर उसमें सूखा गोबर मिलाकर सांचे में ढाला जाता है। मशीन की सहायता से इसे तैयार किया जाता है। चार-पांच दिनों तक उसे धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद कंडा पूरी तरह से तैयार हो जाता है। बरसात के मौसम में थोड़ी परेशानी होती है। लेकिन अब गौशाला में नया बड़ा शेड बन जाने से समस्या नहीं होती है। गोबर के कंडे के प्रोडक्शन में कोई दिक्कत नहीं है। अभी भी कई क्विंटल गोबर का कंडा गोदाम में स्टॉक है। साथ ही हर दिन गोबर का कंडा बनाने का काम जारी है।
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