पेयजलापूर्ति योजना पूर्ण नहीं होने पर सीएस सहित कई अधिकारियों को अवमानना नोटिस, कोर्ट में हाजिर होकर देना है जवाब
झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में साहिबगंज में पाइपलाइन से पेयजल उपलब्ध कराने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने मुख्य सचिव नगर विकास सचिव पेयजल सचिव और साहिबगंज के उपायुक्त को अवमानना का नोटिस जारी किया है।

राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में साहिबगंज में पाइपलाइन से पेयजल उपलब्ध कराने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई।
सुनवाई के बाद अदालत ने मुख्य सचिव, नगर विकास सचिव, पेयजल सचिव और साहिबगंज के उपायुक्त को अवमानना का नोटिस जारी किया है।
अदालत ने अधिकारियों से पूछा है कि आश्वासन देने के बाद भी पेयजल आपूर्ति योजना पूरी नहीं करने पर क्यों नहीं आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए।
अधिकारियों को कोर्ट में उपस्थित होकर देना है जवाब
मामले में अगली सुनवाई दस अक्टूबर को होगी। इस दिन अधिकारियों को कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देना है।
सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता राजीव शर्मा ने अदालत को बताया कि साहिबगंज में वर्ष 2008 से पाइपलाइन से पेयजल आपूर्ति योजना शुरू की गई थी।
उस समय इसकी लागत 15 करोड़ थी। अभी तक इसे पूरा नहीं किया गया है। निकट भविष्य में भी इसे पूरा करने की कोई उम्मीद नहीं है।
एक वर्ष पूर्व पेयजल सचिव ने छह माह में साहिबगंज में पेयजल आपूर्ति की योजना पूरी करने का कोर्ट को आश्वासन दिया था। लेकिन अभी तक कार्य पूरा नहीं हुआ है।
15 करोड़ से बढ़कर 70 करोड़ हो गई राशि
लेकिन इस योजना की राशि बढ़कर 70 करोड़ हो गई है। इस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए सरकार से पूछा है कि कब तक योजना का काम पूरा कर लिया जाएगा।
पिछली सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत को बताया गया था कि जलापूर्ति योजना के लिए नई कंपनी को काम दिया गया है। इसमें कुछ समय लगेगा।
इसका प्रार्थी की ओर से विरोध किया गया और आरोप लगाया गया कि सरकार गलत जानकारी दे रही है। इस संबंध में सिद्धेश्वर मंडल ने जनहित याचिका दाखिल की है। वर्ष 2016 में ही जलापूर्ति योजना पूरी करने के लिए जनहित याचिका दाखिल की गई थी।
हाई कोर्ट ने इस योजना को पूरा करने का निर्देश सरकार को दिया था और प्रार्थी को छूट देते हुए अदालत ने कहा था कि यदि कार्य पूरा नहीं हो तो वह दोबारा कोर्ट में आ सकते हैं। प्रार्थी ने अदालत को बताया कि योजना का काम अभी भी अधूरा है। इस कारण उन्हें दोबारा याचिका दाखिल करना पड़ा।
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