Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    CNT SPT Act Jharkhand: तब सड़क से सदन तक गूंजा था सीएनटी-एसपीटी का मुद्दा

    By Alok ShahiEdited By:
    Updated: Wed, 08 Jan 2020 12:42 PM (IST)

    CNT SPT Act Jharkhand संशोधन की कवायद में पूर्व सरकार की हो चुकी है किरकिरी झामुमो-कांग्रेस ने बनाया था चुनावी मुद्दा। जानिए आखिर क्‍या है सीएनटी-एसपीटी का मुद्दा...

    CNT SPT Act Jharkhand: तब सड़क से सदन तक गूंजा था सीएनटी-एसपीटी का मुद्दा

    रांची, राज्य ब्यूरो। CNT SPT Act Jharkhand राज्यपाल ने अपने संबोधन में सीएनटी-एसपीटी एक्ट को सख्ती से लागू करने बात कह झामुमो के उस पुराने मुद्दे को बल दे दिया जो झामुमो और पूरा विपक्ष को बैठे-बैठे मिल गया था। पूर्व सरकार ने सीएनटी और एसपीटी एक्ट में संशोधन कर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया था कि विकास कार्यों के लिए आदिवासियों की जमीन ली जा सकेगी। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाते हुए सरकार का आक्रामक विरोध किया। सदन से लेकर सड़क तक हंगामा और तोडफ़ोड़ का चश्मदीद पूरा प्रदेश बना। दूसरी ओर, सरकार की इसलिए किरकिरी हुई क्योंकि राज्यपाल ने संशोधन विधेयक को लगभग पांच महीने बाद वापस लौटा दिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दो वर्ष पूर्व मई 2017 में विधेयक वापस लौटाने के पूर्व आदिवासी संगठनों ने विरोध करते हुए राज्यपाल से इससे संभावित नुकसान की भी जानकारी दी थी। इसके बाद राज्यपाल ने 24 मई को कई आपत्तियों के साथ इस विधेयक को लौटा दिया था। विधेयक लौटने पर विपक्षी दलों ने स्वागत तो किया ही, भाजपा के आदिवासी नेता भी मुखर हो गए और स्वयं अर्जुन मुंडा ने सार्वजनिक तौर पर संशोधन को गलत कदम करार दिया था।

    जानिए कब-कब, क्या-क्या हुआ

    • -23 नवंबर 2016 : विधानसभा में भारी हंगामा, तोडफ़ोड़ के बीच सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक पारित
    • -18 दिसंबर 2016 : विधेयक को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया। 
    • -24 मई 2017 : राज्यपाल ने विधेयक को लगभग पांच महीने तक रखने के बाद वापस लौटाया।

    राज्यपाल एक बार दे चुकी थीं स्वीकृति

    राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन विधेयक को एक बार स्वीकृति दे चुकी थीं। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया था। वहां भी कई संगठनों ने इसपर स्वीकृति नहीं देने की मांग की थी। वहां यह मामला विचाराधीन ही था कि राज्य सरकार ने मूल संशोधन विधेयक में कुछ और संशोधन कर दोबारा इसे विधानसभा से पारित कराया।