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    आरएसएस के पंच प्रण का पर्याय है छठ महापर्व, समरसता, कुटुंब, पर्यावरण, स्वदेशी और कर्तव्य का अनुपम संगम!

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 12:42 AM (IST)

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने पंच प्रण के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का संकल्प लिया है, जिसकी झलक छठ महापर्व में दिखाई देती है। छठ पर्व सामाजिक समरसता, पारिवारिक एकता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी का भाव और नागरिक कर्तव्य का प्रतीक है। यह पर्व समाज को एक सूत्र में बांधता है और सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा देता है।

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    पंच प्रण का पर्याय है छठ महापर्व

    संजय कुमार, रांची।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस ) ने अपने 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में पंच प्रण के माध्यम से समाज के बीच अगले कुछ वर्षों तक काम करने का निश्चय किया है। इस पंच प्रण यानी पंच परिवर्तन के माध्यम से सामाजिक जीवन में बड़ा बदलाव लाने की तैयारी है। 

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    इसमें सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व का भाव और नागरिक कर्तव्य है। इन पांचों बिंदुओं की झलक छठ महापर्व में देखने को मिलती है। हम कह सकते हैं कि पंच प्रण का पर्याय है छठ महापर्व। यही स्थिति हमेशा बना रहे तो समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है। 

    प्रसाद ग्रहण करने में कोई नहीं हिचकता

    पहला सामाजिक समरसता है। छठ महापर्व में छठ घाटों पर यह देखा जा सकता है। सभी व्रती एक साथ तालाब या नदी में भगवान सूर्य देव को अर्घ्य लेती हैं। वहां पर कौन दलित है, कौन पिछड़ा वर्ग का है, कौन ऊंची जाति का है, किसी को कुछ न पता रहता है और न लोग करते हैं। सभी लोग एक दूसरे का सहयोग करने के लिए तत्पर रहते हैं। प्रसाद ग्रहण करने में कोई नहीं हिचकता है। 

    घाटों पर पारिवारिक एकजुटता का भाव 

    कुटुंब प्रबोधन का तो इससे बड़ा उदाहरण नहीं मिल सकता है। परिवार के सभी लोग एक साथ इकठ्ठा होते हैं। परिवार से अलग होकर सैकड़ों किमी दूर रहते हों, लेकिन इस त्योहार में एक साथ जरूर जमा होते हैं। एक छत के नीचे जमा होकर सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। छठ घाटों पर पारिवारिक एकजुटता का भाव देखा जा सकता है। 

    पर्यावरण संरक्षण की बात है तो नदियों व तालाबों की सफाई करते हैं।  सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं के बराबर होता है। जल की बर्बादी नहीं होती है। पूजा में ऋतु फलों को ही चढ़ाया जाता है। 

    घाटों की सजावट भी स्वदेशी

    इसके बाद स्व का भाव तो इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता है। इस पर्व में तो सबकुछ स्वदेशी का ही उपयोग होता है। स्थानीय लोक गीत, स्वदेशी वस्त्र, स्वदेशी पकवान, स्वदेशी पूजन सामग्री का ही उपयोग होता है। घाटों की सजावट भी स्वदेशी ही होता है। 

    इसके बाद नागरिक कर्तव्य बाजारों से लेकर छठ घाटों तक पूरा दिखता है। साफ सफाई का उतना ही ध्यान रखा जाता है। घाटों पर आगे निकलने की जल्दबाजी नहीं दिखती है। बाजारों में भी उसी अनुशासन में रहकर लोग खरीदारी करते हैं। 

    इस तरह यह छठ महापर्व पंच परिवर्तन का अनुठा उदाहरण है। इससे भी हम सीख लें तो समाज में बड़ा बदलाव संभव है।