Champai Soren: 'अपनों' को छोड़ा, फिर भी 'अपने' नहीं हुए चंपई; समझिए 'टाइगर' की सियासी फिल्म का स्क्रीनप्ले
चंपई सोरेन इस समय झारखंड की सियासत में हॉट टॉपिक बने हुए हैं। कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर चंपई अब मझधार में हैं। उन्होंने अपनों को छोड़ दिया है मगर अभी भी अपने नहीं हुए हैं। यानी हेमंत से दूरी बना ली और बीजेपी में जाने के बारे में अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है। चलिए अब हम आपको कोल्हान टागइर की सियासी पिक्चर का पूरा स्क्रीनप्ले समझाते हैं।

प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से अलग राह चुनने को तैयार पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन पर अगर आज सबकी नजरें हैं तो इसमें मुख्यमंत्री और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का निर्णय अहम है। विपरीत परिस्थितियों में जेल जाने से पहले उन्होंने अपने उत्तराधिकारी दल के वरिष्ठ नेताओं में शुमार चंपई सोरेन को चुना था।
बताया जाता है कि उस वक्त हेमंत सोरेन पर विधायकों का काफी दबाव था कि वो अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को उत्तराधिकारी बनाएं। इसकी संभावना भी सबसे अधिक थी, लेकिन हेमंत सोरेन ने अपने पिता शिबू सोरेन के साथी रहे चंपई सोरेन को आगे किया। गठबंधन के विधायकों को इस बात के लिए समझाया और तैयार भी किया।
एक-एक विधायक से कराए हस्ताक्षर
चंपई सोरेन को अपने स्थान पर नेता बनाए जाने के निर्णय संबंधी कागज पर एक-एक कर विधायकों के हस्ताक्षर कराए। चंपई सोरेन भी इसके लायक थे तो इसकी बड़ी वजह शिबू सोरेन परिवार का उनपर गहरा विश्वास था। हालिया घटनाक्रम से लगता है कि यह निर्णय हेमंत सोरेन के लिए हर मामले में नुकसानदेह साबित हुआ।
अब चंपई सोरेन अलग राह पर हैं। बगैर नाम लिए उन्होंने सबसे अधिक निशाने पर हेमंत सोरेन को ही रखा है। यह भी महत्वपूर्ण है कि दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने चंपई सोरने को अपने कैबिनेट में नंबर दो की कुर्सी प्रदान की।
इसके लिए हेमंत सोरेन को अपने भाई विधायक बसंत सोरेन तक को ड्रॉप करना पड़ा। बसंत सोरेन दुमका से विधायक हैं और उन्होंने कभी अपने अग्रज के आदेश की अवहेलना नहीं की।
अब तुलना की जा रही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के निर्णयों से
राजनीतिक गलियारे में चंपई सोरेन की गतिविधि को लेकर अलग-अलग चर्चा है। इस क्रम में पड़ोसी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद तक का उदाहरण दिया जा रहा है। चंपई सोरेन की तुलना जीतनराम मांझी से की जा रही है, जिन्हें नीतीश कुमार ने आगे बढ़ाकर मुख्यमंत्री बनाया। बाद में नीतीश कुमार पर आरोप लगाकर उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली।
चंपई सोरेन ने भी अपने तीन विकल्पों में से दूसरा विकल्प अलग दल बनाने का रखा है। इस दिशा में वे आगे भी बढ़ रहे हैं। लालू प्रसाद का उदाहरण इसलिए दिया जा रहा है कि तमाम दबाव और अपने दल में कई कद्दावर नेताओं की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने ऐसी परिस्थिति में अपनी पत्नी को ही आगे बढ़ाया।
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