झारखंड में फैली हैं बुद्ध की स्मृतियां
इसी तरह गोड्डा जिले के बेलनीगढ़ में भी बुद्ध से जुड़ी स्मृतियां हैं। वहां के अवशेषों इस बात की गवाही देते हैं।

रांची, [ संजय कृष्ण] । आज बुद्ध पूर्णिमा है। इसी दिन बुद्ध ने अपना नश्वर देह का त्याग किया था। इसी दिन उनका जन्म भी हुआ था और यही वह तिथि है, जिस दिन उन्हें संबोधि प्राप्त हुई थी। देश-दुनिया में पचास करोड़ से ऊपर फैले बौद्ध अनुयायियों के लिए इस तिथि का विशेष महत्व है। विशेष महत्व झारखंड के लिए भी है, क्योंकि बुद्ध का नाता झारखंड से भी रहा है।
सिद्धार्थ जब बुद्ध नहीं हुए थे और पुत्र-पत्नी का त्याग कर सत्य की खोज में निकले तो चतरा के ईटखोरी में ऐसा ध्यान लगाया कि वे खो से गए। उनकी मौसी गौतमी उन्हें लेने के लिए आए, लेकिन सिद्धार्थ पर कोई असर नहीं पड़ा और गौतमी के मुख से निकल पड़ा-इत्तखोई। यानी यहीं खो गया। तब से चतरा के इस अंचल का नाम ही ईटखोरी पड़ गया और यही नाम आज भी उस महान घटना की याद दिलाता है। यहां बुद्ध से जुड़े कई अवशेष मिले हैं। कई स्तूप भी हाल के दिनों में मिले है। इसी तरह पलामू में भी दो स्तूप चार साल पहले मिले।
इसी तरह गोड्डा जिले के बेलनीगढ़ में भी बुद्ध से जुड़ी स्मृतियां हैं। वहां के अवशेषों इस बात की गवाही देते हैं। गोड्डा के पूरे मेहरमा प्रखंड में प्रतिमाओं के अवशेष बिखरे पड़े हैं। यहां के लोग बेलनीगढ़ को भिक्षुणीगृह भी कहते हैं। इसी तरह देवघर का करौं ग्राम अशोकालीन माना जाता है। इसे अशोक के पुत्र राजा महेंद्र ने बसाया था। यहां अशोक का स्तूप भी मौजूद है। यहां खुदाई नहीं हुई है। लेकिन बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि यहां खुदाई हो तो कई बौद्धकालीन विहार मिल सकते हैं।
रांची के पास गौतमधारा भी है। कहीं न कहीं उनकी स्मृति से जुड़ा हुआ स्थल है। पर, अभी यहां ध्यान नहीं दिया गया है। न सरकार की ओर से न पुरातत्व विभाग की ओर से। केवल ईटखोरी में सरकार ने प्रयास किए हैं, जहां काफी अवशेष मिले।
पलामू में भी भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने दो स्तूप खोजे। इसके बाद काम बंद हैं। जबकि इन स्थलों को बेहतर बनाया जा सके और बुद्ध सर्किट से जोड़ दिया जाए तो काफी पर्यटक यहां आ सकते हैं। राज्य सरकार ने ईटखोरी में तो पहल शुरू कर दी है। पर, उपेक्षित स्थानों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

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