हजारीबाग के सीतागढ़ा में छिपा है बौद्ध इतिहास, बारिश में बहकर आ गई थीं मूर्तियां व चांदी के सिक्के
Buddhist History in Sitagarha Hazaribagh पहाड़ की तलहटी में बारिश के दिनों में 1998 में मूर्तियां चांदी के सिक्के मिली थी। पुरातत्वविद इतिहास खंगालने में जुटे हैं। सर्वे में उन्हें पता चला कि यहां बौद्ध कालीन इतिहास छिपा है।
हजारीबाग, [अरविंद राणा]। Buddhist History in Sitagarha Hazaribagh हजारीबाग के सदर प्रखंड स्थित जुलजुल पहाड़ियों की श्रृंखला में बौद्ध इतिहास छिपा है, यह किसी को पता नहीं था। वर्ष 1998 में लोगों के आश्चर्य का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा जब पहाड़ की तलहटी से गुजर कर आने वाले पानी में ग्रामीणों को मूर्तियां मिलीं और पास के तालाब के पास चांदी के सिक्के मिले। इस घटना ने पुरातत्वविदों का ध्यान खींचा। रांची से आए पुरातत्व विभाग के लोगों ने इस क्षेत्र का सर्वे किया।
सर्वे में उन्हें पता चला कि यहां बौद्ध कालीन इतिहास छिपा है। 2019 -20 में जब इसकी खुदाई शुरू हुई तो यहां कई राज बाहर आए। यहां पाल काल के समय की मूर्तियां, बौद्धों के साधना स्थल, पूजन चक्र, ब्रह्म अष्ट दल कमल, बौद्धों की देवी मां तारा की मूर्तियां मिलीं। पहाड़ियों की श्रृंखला करीब आठ किलोमीटर में फैली है। जंगली जानवरों का यह शरणस्थली है।
फिर शुरू हुई खुदाई
बहोरनपुर गांव से सटी पहाड़ी की तलहटी में पुरातत्व विभाग ने कुछ दिनों तक खुदाई की। इसमें कई महत्वपूर्ण वस्तुएं मिलीं। 27 जनवरी 2020 को यह काम बंद हो गया। करीब एक साल बंद होने के बाद इसी वर्ष कुछ दिनों वहां फिर से खुदाई का काम शुरू हुआ है। सर्वे दल ने पहाड़ी के अन्य क्षेत्र और जंगल में आधा दर्जन से अधिक साधना स्थल होने का पता लगाया है। इतना हीं नहीं, एक कुआं जो अब क्षतिग्रस्त हो चुका है, इसकी भी खोज की।
बिखरे पड़े हैं अवशेष
सीतागढ़ा के बहोरनपुर से लेकर अमनारी पंचायत के सेखा गांव तक बौद्ध और हिंदू देवी देवताओं के अवशेष बिखरे पड़े है। पांच किलोमीटर की परिधि में बौद्ध धर्म से जुड़े कई बड़े राज भी छिपे और बिखरे हैं। वहीं हर घर में आज भी इसके अवशेष पड़े हैं। ग्रामीणों की मानें तो जब भी बरसात में तेज बारिश होती है पहाड़ी से होकर बहने वाली नाले में मूर्तियां, चांदी के सिक्के और जेवरात पाए जाते हैं।
बहोरनपुर में कुएं और बाउड़ी
यूं तो पूरे इलाके में पुरातात्विक अवशेष बिखरे पड़े हैं, लेकिन बहोरनपुर में सर्वाधिक मात्रा में अवशेष, ईंट और बौद्ध स्तूप होने के प्रमाण हैं। अकेले बहोरनपुर में तीन ऐसे टिलहे हैं जहां बौद्ध स्तूप होने के सबसे ज्यादा अनुमान है। इतना ही नहीं, बहोरनपुर से लगे 500 मीटर परिधि में पाल काल के बने पांच कुएं और छह बाउड़ी हैं। इनमें दो कुएं आज भी विद्यमान हैं, कुआं पत्थर से बनाए गए है। पत्थर एक समान और गोल हैं।
मूर्तियों को मुखिया के घर में मिली जगह
पहाड़ी की तलहटी और तालाब से खोदाई में प्राप्त अवशेष गंदा न हो जाए या फिर इसमें पैर न पड़ जाए। यह सोच कर ग्रामीणों ने बरामद सभी मूर्तियों को अपने अपने घरों में रख दिए। मुखिया गुरहेत महेश तिग्गा ने बताया कि हर घर में यहां पुरातत्व से जुड़े प्रमाण मौजूद हैं। जुलजुल की पहाड़ी पर तालाब है लेकिन अब यह सूख चुका है। ऊपर बड़ा सा चबूतरा है और पत्थरों में नक्काशी की गई है।
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