'दिव्या' और 'प्रियम' से मिलेगा झारखंड के किसानों को संबल, जानिए कैसे Ranchi News
10 वर्षों से अधिक शोध के बाद ज्यादा उपज देने वाली तीसी की दो किस्में विकसित हुई हैं। दिव्या एवं प्रियम को सेंट्रल सीड चेन में शामिल किया गया है।
रांची, जासं। अखिल भारतीय तीसी एवं कुसुम समन्वित अनुसंधान परियोजना के राष्ट्रीय कार्य समूह की कानपुर में हुई बैठक में प्रजनक बीज इंडेंट मेंं बीएयू को बड़ी कामयाबी मिली है। बैठक में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के अनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग द्वारा तीसी फसल की दो विकसित किस्मों 'दिव्या' एवं 'प्रियम' को सेंट्रल सीड चेन में शामिल किया गया है।
बीएयू को वर्ष 2019-20 में दिव्या किस्म का 1.6 क्विंटल तथा प्रियम किस्म का 1.5 क्विंटल प्रजनक बीज उत्पादन करने का इंडेंट (सामान का ऑर्डर या मांगपत्र) एवं लक्ष्य दिया गया है। बीएयू के तीसी शोध परियोजना प्रभारी डॉ. सोहन राम ने बताया कि संस्थान में दस वर्षों से अधिक शोध के बाद झारखंड के लिए अधिक उपज देने वाली इन दो किस्मों को विकसित किया गया है।
परंपरागत खेती से किसानों को मिलता है कम लाभ
डॉ. सोहन राम ने बताया कि प्रदेश में तीसी की परंपरागत खेती से कम उत्पादन होता है और इस कारण किसानों को कम लाभ मिलता है। राज्य में तीसी फसल की अंतरवर्ती एवं मिश्रित फसल के रूप में गेहूं, चना, मसूर, कुसुम, आलू, प्याज, फ्रेंचबीन और ईख के साथ खेती प्रचलित है। बीएयू द्वारा विकसित तीसी की किस्म 125 से 130 दिनों में तैयार होने वाली है। दोनों किस्मों में 35-40 फीसद तक तेल की मात्रा पाई जाती है। जल्द ही इन दोनों किस्मों के प्रजनक बीज से राष्ट्रीय स्तर पर अन्य केंद्रों में शोध एवं प्रसार को बढ़ावा दिया जाएगा। देश के कई राज्यों में वैज्ञानिकों ने दोनों किस्मों का प्रदर्शन बेहतर पाया है।
झारखंड की जलवायु और भूमि तेलहनी फसल के उपयुक्त
राज्य की जलवायु और भूमि तेलहनी फसल की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। झारखंड देश में तीसी उत्पादन में छठे स्थान पर है। अब बीएयू द्वारा विकसित दो नई किस्में किसानों को मिलने से उत्पादकता और बढ़ेगी। बेहतर मुनाफे को देखते हुए वर्ष 2017-18 में लगभग 40 हजार हेक्टेयर भूमि में तीसी की खेती की गई थी।
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