Jharkhand हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति में आया बड़ा फैसला,न्यायिक आयोग करेगा मेरिट लिस्ट की जांच
झारखंड हाई कोर्ट ने हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मेरिट लिस्ट की जांच के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया है। इसका नेतृत्व सेवानिवृत्ति जस्टिस एसएन पाठक करेंगे। प्रार्थियों की ओर से हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति की मेरिट लिस्ट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। झारखंड हाई कोर्ट में इससे संबंधित 252 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति की राज्यस्तरीय मेरिट लिस्ट की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है, जो तीन माह में अपनी जांच रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करेगी।
अदालत ने कहा है कि जांच के बाद जेएसएससी के दोषी अधिकारी और पदाधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर निर्णय लिया जाएगा।
अदालत ने हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस एसएन पाठक को न्यायिक आयोग का अध्यक्ष बनाया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि आयोग ने इस मामले में कोर्ट के गुमराह करने का प्रयास किया है।
इस वजह से कोर्ट ने बाध्य होकर जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया है। अदालत ने चिंता जताते हुए कहा है कि जेपीएससी और जेएसएससी की प्रत्येक परीक्षा के बाद भारी संख्या में हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की जा रही हैं।
परीक्षा में पारदर्शिता के अभाव होने की वजह से हाई कोर्ट को रिकार्ड के आधार पर लंबी सुनवाई के बाद फैसला देना पड़ता है। ऐसे में हाई कोर्ट का भी समय बर्बाद होता है।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह जेपीएससी और जेएसएससी के स्तर पर ही एक प्राधिकार की नियुक्ति पर विचार करे, ताकि पारदर्शी तरीके से अभ्यर्थियों के मामले को प्राथमिक स्तर पर ही निपटाया जा सके, जिससे योग्य मामले की हाई कोर्ट में आ सकें।
हाई कोर्ट ने उक्त आदेश मीना कुमारी सहित 252 याचिकाओं पर दिया है। पूर्व में अदालत ने वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, इंद्रजीत सिन्हा, चंचल चैन और तेजस्विता सफलता ने पक्ष रखा था।
जबकि सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन और जेएसएससी की ओर से संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह पक्ष रखा।
आयोग ने सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किया
अदालत ने 518 पेज के अपने आदेश में स्पष्ट तौर अंकित किया है कि हाई कोर्ट के बार-बार आदेश के बाद भी जेएसएससी ने सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जेएसएससी को संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करनी थी। लेकिन जेएसएससी ने ऐसा नहीं किया। आयोग ने 13 हजार से अधिक अभ्यर्थियों की सूची दी है, जिसे संशोधित मेरिट लिस्ट नहीं कहा जा सकता है।
आयोग और सरकार की ओर से कोर्ट में प्रस्तुत लिस्ट में हजारों की संख्या में ऐसे नाम अंकित किए गए हैं, जो अभ्यर्थी अनुपस्थित रहे या वर्ष 2019 में योगदान ही नहीं दिया।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि ऐसे अभ्यर्थियों का नाम सफल सूची में कैसे जोड़ा गया। यदि सारे अनुपस्थित थे तो जांच का विषय यह है कि उनके स्थान पर किनकी नियुक्ति की गई।
इसके अलावा हजारों की संख्या में अभ्यर्थियों का नाम दिया गया, जिनके प्राप्तांक एवं विवरण या तो खाली अथवा अधूरे थे। इससे यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि वास्तव में वादी से कम अंक पाने वाले अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गई है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने मूल (सोनी कुमारी) मामले में 425 वादियों की नियुक्ति को लेकर आदेश पारित किया था। सरकार की ओर से प्रस्तुत सूची में वैसे अभ्यर्थियों की संख्या अधिक है।
जबकि 377 ने ही योगदान दिया था। अदालत समेकित रूप से गौर करने के बाद इन तथ्यों को नजर अंदाज नहीं कर सकती है।
यदि सरकार की ओर से सरेंडर किए गए 3700 से अधिक पदों को छोड़ दिया जाए, तो भी 2034 पद खाली रह गए हैं। यह आश्चर्य का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश बाद वादियों की नियुक्तियां क्यों नहीं की गई।अदालत ने 2034 रिक्त पदों पर वादियों की मेरिट के आधार पर भरने का आदेश दिया है।
प्रार्थियों ने न्यायिक जांच की मांग की थी
ना कुमार सहित अन्य की ओर से दाखिल याचिका में सरकार की मेरिट लिस्ट पर सवाल उठाया गया था और कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत मेरिट लिस्ट जारी नहीं किया गया है>
इसमें काफी गंभीर त्रुटियां है। इसलिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया जाए। जबकि सरकार की ओर इसका विरोध किया गया था और मेरिट लिस्ट को सही बताया गया था।
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