Big Decision: झारखंड में ढाई लाख की आबादी... अब भोगता जाति के लोग कहलाएंगे अनुसूचित जनजाति
Jharkhand Tribals 72 वर्ष पूर्व अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाए गए थे। इस समय झारखंड में इनकी आबादी ढाई लाख है। राज्यसभा में जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने पेश किया संशोधन बिल। पुरान भी अब अनुसूचित जनजाति तमड़िया मुंडा का पर्याय।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड की अनुसूचित जनजातियों की सूची में बदलाव होगा। सोमवार को राज्यसभा में जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस बाबत संशोधन बिल पेश किया। इसके मुताबिक अनुसूचित जातियों की सूची में क्रम संख्या तीन पर सूचीबद्ध भोगता को विलोपित कर दिया गया है। भोगता अब अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होंगे, पुरान को भी इसमें प्रविष्टि दी गई है।
राज्यों से मिली अनुशंसा के आधार पर निर्णय
अनुसूचित जनजातियों की सूची में क्रम संख्या 16 पर भोगता, देशवारी, गंझू, दौतलबंदी (द्वालबंदी), पटबंदी, राउत, माझिया, खैरी (खेरी) को खरवार के पर्याय के तौर पर शामिल किया गया है। चूंकि खरवार झारखंड में एसटी की सूची में दर्ज है, ऐसे में भोगता को इसका पर्याय होने के नाते उन्हें भी अनुसूचित जनजाति में शामिल माना जाएगा। अर्जुन मुंडा ने राज्यसभा में बिल पेश करते हुए कहा कि राज्यों से मिली अनुशंसा के आधार पर यह निर्णय किया गया है।
टीआरआर ने भारत सरकार से अनुशंसा की थी
गौरतलब है कि वर्ष 2002 में जनजातिय शोध संस्थान (टीआरआर) ने भारत सरकार से अनुशंसा की थी कि भोगता को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए। इसके अलावा सूची में 24 क्रमांक संख्या पर मुंडा के पर्याय के रूप में तमरिया या तमडिय़ा को शामिल किया गया है। तमरिया को मुंडा का पर्याय के रूप में शामिल करने से एक विवाद का भी पटाक्षेप हो जाएगा। अर्जुन मुंडा के विरोधी उन्हें निशाना बनाते रहे हैं कि वे असली मुंडा नहीं, वे तमरिया हैं।
वर्षों से चल रही अस्तित्व की लड़ाई
भोगता समुदाय लंबे समय से खुद को एसटी में शामिल करने की मांग करता रहा है। इनका दावा है कि घने जंगलों, पहाड़ों में बसने के कारण अपने सामाजिक शैक्षणिक एवं राजनीतिक विकास से यह समुदाय कोसों दूर है। जिसके कारण अपनी मूलभूत सुविधाओं एवं अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है। आजादी के बाद एक साजिश के तहत 10 अगस्त 1950 में भोगता समुदाय को अलग जाति बनाकर एसटी की श्रेणी से हटा दिया गया। जिसके कारण भोगता समुदाय 72 वर्षों से अपने अस्तित्व की मूल पहचान से वंचित है। राज्य में भोगता की आबादी करीब ढाई लाख है।
कुड़मी को आदिवासी में शामिल करने की उठी मांग
राज्यसभा में बिल पेश करने के दौरान कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग उठी। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कुड़मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग पुरानी है। बंगाल सरकार भी इसके पक्ष में है। कुड़मी जाति की संख्या लाखों में है। सरकार को इसपर भी निर्णय करना चाहिए।