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    झारखंड शराब घोटाला: जांच पर गंभीर सवाल, नेता प्रतिपक्ष ने कहा- जानबूझकर हो रही देरी, CBI जांच की मांग

    Updated: Thu, 21 Aug 2025 03:57 PM (IST)

    भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर शराब घोटाले की जांच में लापरवाही का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जांच में जानबूझकर देरी की गई जिससे गिरफ्तार आरोपियों को जमानत मिल गई। मरांडी ने इस पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की है।

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    नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लिखा पत्र।

    राज्य ब्यूरो, रांची। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर झारखंड में हुए कथित शराब घोटाले की जांच में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। उन्होंने आशंका जताई है कि जांच जानबूझकर धीमी की जा रही है, ताकि मुख्य आरोपी बच निकलें और गिरफ्तार किए गए लोगों को जमानत मिल सके।

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    पत्र में मरांडी ने कहा कि एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने आनन-फानन में कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन तीन महीने के भीतर आरोपपत्र तक दाखिल नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप जेल में बंद सभी आरोपियों को एक-एक कर जमानत मिल रही है।

    यह इस बात का सबूत है कि जांच सिर्फ दिखावा है। यह भी आरोप लगाया कि जांच के दौरान अधिकारियों के बयानों की पूरी रिकॉर्डिंग नहीं की गई, जिससे जांच अधिकारी को मनमुताबिक बयान दर्ज करने की सुविधा मिली। मरांडी ने इस पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की है।

    गुरुवार को लिखे पत्र में मरांडी ने कहा है कि उन्हें आशंका थी कि शराब घोटाले की जांच और गिरफ्तारी केवल जनता की आंख में धूल झोंकने और बड़े षड्यंत्रकारियो को बचाने के लिए है।

    दिखावे की यह जांच भयादोहन कर मोटी रकम वसूली का रास्ता निकालने का एक प्रयास है। दुर्भाग्य से यह आशंका अब सच साबित हो रही है। ऐसे में घोटाले की जांच सीबीआई से कराना जरूरी है।

    क्या है झारखंड शराब घोटाला?

    यह घोटाला वर्ष 2022-23 से जुड़ा है, जब झारखंड में शराब की खुदरा बिक्री के लिए एक नई नीति लागू की गई थी। इस नीति के तहत, निजी ठेकेदारों के बजाय झारखंड राज्य बेवरेजेज कॉरपोरेशन लिमिटेड को शराब बेचने का जिम्मा दिया गया।

    आरोप है कि इस दौरान एक सिंडिकेट ने सरकारी राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले में धन शोधन का भी संदेह जताया था, जिसके बाद कुछ अधिकारियों और कारोबारियों के ठिकानों पर छापेमारी भी की गई थी।

    जांच एजेंसियां और उनकी भूमिका

    • एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी): झारखंड सरकार के अधीन यह एजेंसी राज्य में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है। इस मामले में, एसीबी ने ही कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया था।
    • प्रवर्तन निदेशालय (ईडी): यह केंद्र सरकार की एजेंसी है, जो धन शोधन और विदेशी मुद्रा से जुड़े मामलों की जांच करती है। ईडी ने भी इस मामले में अपनी जांच शुरू की थी और कई स्थानों पर छापे मारे थे।
    • केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई): यह एक शीर्ष जांच एजेंसी है, जिसकी मांग अब बाबूलाल मरांडी ने की है। सीबीआई को अक्सर ऐसे मामलों की जांच सौंपी जाती है, जिनमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार या राजनीतिक मिलीभगत की आशंका होती है।

    जांच में देरी का कानूनी पहलू

    कानून के अनुसार, किसी भी आपराधिक मामले में गिरफ्तारी के 60 से 90 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल करना होता है। यदि ऐसा नहीं होता है, तो आरोपी को 'वैधानिक जमानत' या डिफॉल्ट बेल मिल जाती है। मरांडी का आरोप है कि एसीबी ने जानबूझकर आरोपपत्र दाखिल करने में देरी की, जिससे आरोपियों को जमानत मिल सकी।