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    काकोरी कांड में शामिल अशफाक उल्‍ला खां को आज ही के दिन दी गई थी फांसी, दोस्‍त की दगाबाजी से हुए थे गिरफ्तार

    By Jagran NewsEdited By: Arijita Sen
    Updated: Tue, 19 Dec 2023 09:17 AM (IST)

    देश को गुलामी की जंजीरों से छुड़ाकर खुद बलिदान होकर अमर हो जाने वाले मां भारती के वीर सपूत अशफाक उल्‍ला खां की आज पुण्‍यतिथि है। काकोरी कांड में शामिल राम प्रसाद बिस्‍मिल अशफाक उल्‍ला खान और रोशन सिंह को आज ही दिन अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी की सजा दी थी। क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड की घटना को नौ अगस्त 1925 को अंजाम दिया था।

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    पलामू में छिपकर अशफाक उल्ला खां ने की थी नौकरी बलिदान दिवस आज।

    संजय कृष्ण, रांची। काकोरी कांड का एक सिरा झारखंड के पलामू से भी जुड़ता है। काकोरी कांड के महान क्रांतिकारी अशफाक उल्लाह खां डालटनगंज में दस महीने तक अपनी पहचान छिपाकर नौकरी करते रहे। उस समय जब यह बिहार का हिस्सा था।

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    दोस्‍त की दगाबाजी से हुई गिरफ्तारी

    26 सितंबर, 1925 की रात जब काकोरी कांड को लेकर पूरे देश में एक साथ गिरफ्तारियां हुईंं, तो अशफाक पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। पहले वह नेपाल गए। कुछ दिन वहां रहकर कानपुर आ गए और गणेशशंकर विद्यार्थी के प्रताप प्रेस में दो दिन रुके। वहां से बनारस होते हुए पलामू आ गए।

    यहां दस महीने तक रहे। डालटनगंज शहर में उन्होंने मथुरा के लाला जी के रूप में नौकरी कर ली। एक दिन भेद खुल गया तो अशफाक डालटनगंज से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली चले गए और अपने जिले शाहजहांपुर के एक पुराने दोस्त के घर पर ठहरे। लेकिन दोस्त ने दगा कर दी और फिर वे गिरफ्तार कर लिए गए।

    आज ही के दिन दी गई थी फांसी

    इसके बाद 19 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद में इन्हें फांसी दे दी गई। तब इनकी उम्र महज 27 साल थी। पलामू के महावीर वर्मा ने लिखा है, काकोरी षडयंत्र केस का प्रमुख अभियुक्त अशफाक उल्लाह खां ने बहुत दिनों तक पलामू जिला परिषद में काम किया था। वे गुप्त रूप से क्रांतिकारियों के संगठन में व्यस्त रहते थे। उस समय पलामू क्रांतिकारियों का गढ़ था।' यहां रहने के दौरान उन्होंने खुद को मथुरा का कायस्थ बताया था। उन्होंने यहां बांग्ला भाषा भी सीखी थी।

    नौ अगस्त का वह ऐतिहासिक दिन

    क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड की घटना को अंजाम नौ अगस्त 1925 को दिया था। ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ युद्ध में हथियार खरीदने के लिए ट्रेन से ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटा था।

    हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के दस सदस्यों ने इस घटना को अंजाम दिया था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर आठ अगस्त को हुई आपात बैठक में इसकी योजना बनी थी और अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को हरदोई शहर के रेलवे स्टेशन से सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग सवार हुए।

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    अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में रोकी गई थी ट्रेन

    शाहजहांपुर से बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, मुरारी शर्मा और बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिडी, शचींद्रनाथ केशव चक्रवर्ती, औरैया से चंद्रशेखर आजाद और मनमथनाथ गुप्ता और मुकुंदी लाल शामिल थे।

    नौ अगस्त 1925 को अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व ट्रेन रोकी गई। लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन पर घटना को अंजाम दिया गया, जिसे काकोरी कांड का नाम दिया गया।

    बेहतरीन शायर थे अशफाक

    सरकार ने कुख्यात स्काटलैंड यार्ड को इसकी जांच में लगा दिया। एक महीने तक कड़ी मेहनत के बाद एक ही रात में कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

    26 सितंबर, 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। पर अशफाक बनारस भाग निकले, जहां से वो बिहार यानी डालटनगंज चले गए।

    उनका जन्म शाहजहांपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खां था।

    राम प्रसाद बिस्मिल की तरह अशफाक भी बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिंदी व अंग्रेजी में लेख एवं कविताएं भी लिखा करते थे।

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