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    Ash Wednesday: क्या होता है राख बुधवार... जानिए- 40 दिनों तक क्यों पश्चाताप करेंगे ईसाई

    Ash Wednesday रीस्तियों और काथलिक कलीसिया के लिए आज का दिन यानी राख बुधवार बड़ा महत्व का दिन होता है। आज होने वाली सभी प्रार्थनाएं विश्वशियों के जीवन में परिवर्तन त्याग और आदर्श को बल देते है। इस दिन के महत्व को जानिए...

    By Sanjay KumarEdited By: Updated: Wed, 02 Mar 2022 11:33 AM (IST)
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    Ash Wednesday: आज है राख बुधवार, चालीस दिनों तक विश्वासी करेंगे पश्चाताप

    रांची, जासं। Ash Wednesday संत मारिया चर्च में महाधर्मप्रान्त के आर्चाय बिशप फेलिक्स टोप्पो ने विश्वासियों के बीच मिस्सा प्रथना किया। इसके बाद विश्वासियो के माथे पर राख लगाई। ख्रीस्तियों और काथलिक कलीसिया के लिए आज का दिन यानी राख बुधवार बड़ा महत्व का दिन होता है। काथलिक कलीसिया के पूजन विधि कलेंडर के अनुसार आज से उनके चालीसा की शुरूआत हो जाएगी। यह दिन पुण्य काल का द्वार है। जहां हर विश्वासी, अगले चालीस दिनों में विशेष प्रार्थना, त्याग, तपस्या, पुण्य का काम और खुद के जीवन का मुल्यांकन करते हुए यीशु ख्रीस्त के प्यार, बलिदान, दुखभोग, मरण के रहस्यों को समझ कर ईस्टर की तैयारी करते है।

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    फादर सुशील टोप्पो ने बताया कि प्रवेश गान और परिचय के बाद निवेदन प्रार्थना चढ़ाई जाएगी। माथे में राख लगाना ही पछतावा का प्रतीक हैं। इसलिए पश्चाताप की धर्म विधि को छोड़ दिया जाता है। राख की आशीष प्रार्थना में राख और विश्वासियों के लिए विनती की जाती हैं। आज होने वाली सभी प्रार्थनाएं विश्वशियों के जीवन में परिवर्तन, त्याग और आदर्श को बल देते है।

    कैसे किया जाता है राख का निर्माण

    उन्होंने आगे बताया कि राख बुधवार की आशीष पवित्र जल से की जाएगी। इसके बाद राख का वितरण किया जाएगा। बताते चलें कि माथे पर लगाए जाने वाले राख का निर्माण बीते वर्ष आशीष की गई खजूर के पतियों से तैयार किया जाता है। मालूम हो कि प्रति वर्ष खजूर की डालियों की आशिष, पास्का पर्व के ठीक एक सप्ताह पहले रविवार के दिन किया जाता है। जरूरत के अनुसार राख की आशीष और उसका वितरण बिना मिस्सा के भी किया जा सकता है।

    राख को माथे पर धारण करने का यह है अर्थ

    राख, ख्रीस्त विश्वासियों के आन्तरिक पश्चाताप का बाहरी चिन्ह है। शरीर का निर्माण मिट्टी से हुआ और एक दिन यह पुनः मिटटी में मिल जाएगा। इस राख को धारण कर इसाई यह प्रण लेते हैं कि उपवास, प्रार्थना, पुण्य का काम और दान-धर्म के द्वारा यीशु ख्रीस्त के शिक्षा का पालन करेंगे और उसके अनुसार अपना जीवन बिताएंगे।