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    IPS अमरजीत बलिहार हत्याकांड में फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदली, एसपी के साथ छह पुलिसकर्मी हुए थे बलिदान

    By Manoj Singh Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Wed, 10 Dec 2025 07:01 PM (IST)

    झारखंड हाई कोर्ट ने पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार और छह पुलिसकर्मियों की हत्या मामले में दो माओवादियों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बद ...और पढ़ें

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    झारखंड हाई कोर्ट ने पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार और छह पुलिसकर्मियों की हत्या मामले दो माओवादियों के फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है।

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार और छह पुलिसकर्मियों की हत्या मामले दो माओवादियों के फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले पर खंडपीठ के दो जजों का अलग-अलग निर्णय होने से मौत की सजा को बरकरार रखना संभव नहीं है। भले ही अपराध बेहद गंभीर क्यों न हो।

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    दुमका की निचली अदालत ने एसपी अमरजीत बलिहार के हत्यारे दो माओवादी सुखलाल उर्फ प्रवीर मुर्मू एवं सनातन बास्की उर्फ ताला को फांसी की सजा सुनाई थी। इससे पहले हाई कोर्ट की खंडपीठ के जस्टिस आर मुखोपाध्याय ने अपील करने वालों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। जबकि जस्टिस संजय प्रसाद ने दोनों को दोषी मानते हुए मौत की सजा को उचित ठहराया था।

    दोनों जजों के निर्णय में अंतर ने सजा पर असहमति पैदा कर दी। इसके बाद इस मामले को सुनवाई के लिए जस्टिस गौतम कुमार चौधरी के पास भेजा गया था। जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने निचली अदालत के दोष सिद्धि बरकरार रखते हुए कहा कि पुलिस एस्कार्ट टीम के घायल सदस्यों के बयान हमले में अपीलकर्ताओं की भूमिका को स्पष्ट रूप से साबित करते हैं।

    कोर्ट ने माना कि हमला सोची-समझी साजिश का था हिस्सा 

    कोर्ट ने माना कि हमला सोची-समझी साजिश का हिस्सा था और राज्य की कानून-व्यवस्था को चुनौती देने की गंभीर कोशिश थी। हथियारबंद समूहों द्वारा राज्य की संप्रभु ताकत को चुनौती देना कानून के राज के लिए बड़ा खतरा है और यह हमला केवल पुलिस दल पर नहीं बल्कि राज्य की संप्रभुता पर था।

    सजा घटाने पर अदालत ने कहा कि अपराध बेहद गंभीर है और सजा कम करने वाली परिस्थिति भी नहीं मिली, लेकिन सजा के बिंदु पर दो जजों की स्पष्ट असहमति अपने आप में मौत की सजा कम करने का पर्याप्त आधार है। कोर्ट ने इस संदर्भ में कई कोर्ट के आदेश का हवाला भी दिया।

    वर्ष 2013 में पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार चुनाव को लेकर एक बैठक में शामिल होने के लिए दुमका गए थे। इस दौरान लौटने के क्रम में नक्सलियों ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया था। नक्सलियों के हमले में तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार सहित छह पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।

    एसपी अमरजीत बलिहार के हत्यारों ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दुमका कोर्ट के फांसी की सजा को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया था कि निचली अदालत का निर्णय न्याय संगत नहीं है। बिना पुख्ता सबूतों के आधार पर उन्हें फांसी की सजा दी गई है। दोनों सजायाफ्ता ने सजा के आदेश को निरस्त करते हुए बरी करने की गुहार लगाई थी।