BAU Ranchi: किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए अम्लीय भूमि स्वास्थ्य प्रबंधन तकनीक जरूरी
BAU Ranchi बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य के अम्लीय भूमि के मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के क्षेत्र में कई तकनीक विकसित किए हैं। विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग में स्थायी उर्वरक प्रायोगिक प्रक्षेत्र एवं दीर्घ कालीन उर्वरक प्रायोगिक प्रक्षेत्र से प्राप्त नतीजे बेहद उपयोगी एवं लाभकारी हैं।

रांची,जासं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य के अम्लीय भूमि के मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के क्षेत्र में कई उपयोगी तकनीक को विकसित किया है। विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग में पिछले 6 दशकों से स्थायी उर्वरक प्रायोगिक प्रक्षेत्र एवं दीर्घ कालीन उर्वरक प्रायोगिक प्रक्षेत्र से प्राप्त नतीजे बेहद उपयोगी एवं लाभकारी हैं। इन प्रक्षेत्रों के प्रदर्शन से पोस्ट ग्रेजुएट एवं अंडर ग्रेजुएट कृषि छात्रों के साथ – साथ किसानों एवं प्रसार कर्मियों को अनुभव सीख देने की जरूरत है।
यह बातें मंगलवार को बीएयू के कुलपति डा ओंकार नाथ सिंह ने विभाग के फील्ड विजिट के अवसर पर कहीं। उन्होंने कहा कि राज्य में ज्यादातर भूमि अम्लीय हैं। ऐसे में किसानों की ऊपज बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध करने के लिए अम्लीय भूमि स्वास्थ्य प्रबंधन तकनीक का प्रसार करना जरूरी है। कुलपति ने प्रक्षेत्रों के शोध में बुझा चूना के साथ फार्म यार्ड खाद व संतुलित उर्वरकों का प्रयोग के अलावा फार्म यार्ड खाद एवं संतुलित उर्वरक के प्रयोग से फसलों पर प्रभाव की तकनीकों की मार्केटिंग तथा किसानों तक तकनीकी प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया।
इससे प्रदेश की अम्लीय भूमि में विभिन्न फसलों की कम उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने में बढ़ावा मिलेगा।
कुलपति ने विभाग के वैज्ञानिकों के साथ विभिन्न शोध परियोजनाओं में चलाए जा रहे धान, मकई, सोयाबीन, सब्जी सोयाबीन, उरद एवं ज्वार फसलों के प्रायोगिक प्रक्षेत्रों को देखा और शोध की जानकारी ली। उन्होंने शोध कार्यों एवं फसल प्रदर्शन की सराहना की और विभाग के सभी वैज्ञानिकों को प्रक्षेत्रों के शोध उद्देश्य एवं 5 वर्षो के शोध नतीजों से अवगत कराने को कहा।
मौके पर मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के अध्यक्ष डा डीके शाही ने बताया कि विभाग के अधीन सब्जी सोयाबीन, धान फसल का जिंक फोर्टीफिकेशन, जैव प्रौद्योगिकी, सुखा सहिष्णु ज्वार किस्म तथा किसानों की आमदनी दुगुनी विषयों पर नये शोध कार्यक्रम शुरू किये गए हैं। इसके काफी सकारात्मक शोध परिणाम प्राप्त हुआ है। मौके पर वैज्ञानिकों में डा बीके अग्रवाल, डा राकेश कुमार, डा पी महापात्रा, डा अरविन्द कुमार, डा एसबी कुमार, डा आशा सिन्हा, डा एनसी गुप्ता, प्रो भूपेंद्र कुमार एवं डा हिमांशु दुबे भी मौजूद थे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।