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    झारखंड में दामादों से बसा है एक गांव, नाम है जमाईपाड़ा; पढ़ें यह रोचक खबर

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Tue, 24 Nov 2020 08:51 AM (IST)

    Jharkhand News 1982 में ओडिशा के बहलदा से पहले दामाद परमेश्वर बारिक आए थे। लोग अब इस गांव का नाम बदलकर लक्ष्मीनगर करना चाहते हैं। यह गांव सरायकेला राज ...और पढ़ें

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    सरायकेला-खरसावां जिले का जमाईपाड़ा गांव की तस्‍वीर। जागरण

    जमशेदपुर, [वीरेंद्र ओझा]। झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में एक गांव दामादों से बसा है। इसी वजह से गांव का नाम भी जमाईपाड़ा पड़ गया। पूरा गांव ओडिय़ा भाषियों का है, जहां दामाद को ज्वाईं कहा जाता है, लेकिन बोलचाल में आसान होने की वजह से इसका नाम जमाईपाड़ा हो गया। बांग्ला में दामाद को जमाई कहा जाता है। आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र से सटा यह गांव लगभग उसी समय बसा था, जब आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र का गठन हुआ था।

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    यह गांव आदित्यपुर नगर निगम के अधीन आता है। यहां के वार्ड सदस्य पार्थो प्रधान बताते हैं कि आसंगी गांव आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के स्थापित होने के पहले से बसा है। यह आसंगी मौजा में आता है, जिसकी सीमा आदित्यपुर से लेकर गम्हरिया स्थित सुधा डेयरी तक थी। यह सरायकेला राजघराने के राजा आदित्य प्रताप सिंहदेव की रियासत का हिस्सा था। गोपाल प्रधान बताते हैं कि दामाद को बसाने की शुरुआत 1982 में उनके पिता अमूल्यो प्रधान ने की थी।

    देखते ही देखते यहां करीब दामादों के 20 घर हो गए। चूंकि दामादों का घर एक अलग भूखंड में था, लिहाजा इस गांव का नाम जमाईपाड़ा हो गया। अब इस गांव में करीब 200 परिवार हैं, जहां कई दूसरे लोग भी जमीन खरीदकर यहां बसे हैं। हालात है कि अब लोग इस इलाके को आसंगी से कम, जमाईपाड़ा के नाम से ज्यादा जानते हैं। पार्थो बताते हैं कि वर्ष 2005 के बाद यह सिलसिला थम गया है। अब यहां के लोग इस गांव का नाम बदलकर लक्ष्मीनगर करने पर विचार कर रहे हैं। अब यहां लक्ष्मी पूजा भी बड़े पैमाने पर की जाती है।

    आसपास की कंपनियों में करते काम

    इस गांव में हिंदी व अंग्रेजी माध्यम का आदर्श हाई स्कूल और एक ओडिय़ा मध्य विद्यालय भी है, लेकिन यहां चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है। गांव के गोपाल प्रधान बताते हैं कि इतनी आबादी होने के बावजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है। कोई बीमार पड़ता है, तो जमशेदपुर या आदित्यपुर जाना पड़ता है। आदित्यपुर का स्वास्थ्य केंद्र भी करीब पांच किलोमीटर दूर है।

    गांव के अधिकतर लोग आसपास की कंपनियों में काम करते हैं। विवाह के बाद 1982 में बहलदा (ओडिशा) से आकर इस गांव के पहले दामाद परमेश्वर बारिक भी आदित्यपुर की एक कंपनी में काम करते थे। अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं, लेकिन उनके दो बेटे यहां की कंपनियों में काम कर रहे हैं।