माता-पिता के आज्ञा पालन से खुश होते हैं प्रभु
रांची : बालकों! अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपने माता-पिता का आदर कर, यह प्रभु की पहली आज्ञा है। जिसके साथ प्रतिज्ञा भी है कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिनों तक जीवित रहे। आज के इस वर्तमान समय में बच्चे अपने माता-पिता, बड़े-बुजुर्गो का लिहाज नही रखते हैं, न ही उनके प्रति प्रेम और आदर की भावना है। टीवी और फिल्म ने बच्चों के मनों को भ्रष्ट कर दिया है। आज के बच्चे सिर्फ मारधाड़, सेक्स और बदले की भावना से भरपूर चीजों को देखना पंसद करते है। माता-पिता की शिक्षा और बातें उन्हें दकियानूसी और पुरानी लगती हैं। वे इस बात से बिल्कुल अनजान हैं कि पवित्र शास्त्र हमें यह बात बताता है 'हे बालकों सब बातों में अपने-अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है। अपने माता-पिता की आज्ञा मानकर उसका पालन करना हमारे सृजनहार को प्रसन्न करने वाली बात होती है, जिससे हम बहुत वर्षो तक इस संसार में जीवित रहते हैं। माता-पिता के लिए भी यह जरूरी है कि वे अपने बच्चों को क्या शिक्षा देते हैं, क्या वे अपने बच्चों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाना चाहते हैं। यह फिर उन्हें परमेश्वर के भय और प्रेम की ओर उनके ध्यान को लगाने में उनके सहायक बन रहे हैं। राजा सुलेमान कहता है 'लड़के के मन में मूढ़ता की गांठ बंधी रहती है, परंतु अनुशासन की छड़ी द्वारा वह खोलकर उसे दूर की जाती है। माता-पिता द्वारा समझदारी, प्यार और सोच समझ कर दिया गया अनुशासन का पाठ बच्चों को सीखने में मदद करता है कि गलत व्यवहार, दुख देने वाले परिणाम लाता है और इसमें कष्ट भी भोगने पड़ सकते है। छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है। जो लड़का यूं ही छोड़ा जाता है वह अपनी माता की लज्जा का कारण बनता है। ऐसा अनुशासन आवश्यक है, क्योंकि ऐसा न करने से बच्चों में ऐसी मनोवृति का विकास हो सकता है, जो बाद में उन्हें विनाश और मृत्यु तक पहुंचा सकती है। परिवार में ईश्वरीय अनुशासन घर में आनंद और शांति लाता है, यह हमेशा प्रेमपूर्वक किया जाए। जिस प्रकार हमारा स्वर्गीय पिता करता है।
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