सूदखोरी की तो तीन साल की जेल
रांची : राज्य सरकार ने महाजनी प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए अवैध सूदखोरी व्यवसाय को बंद करने का
रांची : राज्य सरकार ने महाजनी प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए अवैध सूदखोरी व्यवसाय को बंद करने का बड़ा फैसला लिया है। इस प्रावधान को कानून की शक्ल देने के लिए बकायदा झारखंड निजी साहूकार (निषेध) विधेयक, 2016 लाया गया है, जिसे विधानसभा ने गत 23 नवंबर को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है।
संशोधित कानून में स्पष्ट किया गया है कि अब कोई व्यक्तिकिसी वस्तु, संपत्ति, जमीन, स्वर्ण आदि बंधक या रेहन रखकर साहूकारी या सूदखोरी का व्यवसाय नहीं कर सकेगा। यदि कोई व्यक्तिइस कानून का उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल कारावास एवं पांच हजार रुपये का अर्थदंड दिया जाएगा। संशोधित एक्ट में यह भी कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसे मामलों में पूर्व में सजा काट चुका है और उसके विरुद्ध दोबारा इस कानून के उल्लंघन का दोष सिद्ध होता है तो उसे पांच वर्ष तक के कारावास एवं दस हजार रुपये का अर्थ दंड दिया जाएगा।
विकास आयुक्तसह योजना एवं वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव अमित खरे ने कहा कि सदियों से झारखंड में भोले-भाले ग्रामीणों, जिनमें जनजातीय समुदाय की संख्या अधिक है, महाजनी एवं सूदखोरी की वजह से शोषण का शिकार हो रहे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सूदखोरी के चंगुल से निकालने के लिए कई उपाय किए गए लेकिन वे महाजनी के चंगुल से पूरी तरह से नहीं निकल सके। अविभाजित बिहार में भी 'बिहार साहूकार अधिनियम 1974' लागू था, जिसे झारखंड सरकार ने भी अंगीकार किया था। लेकिन इस कानून के प्रावधान सिर्फ महाजनों को नियंत्रित करने तक ही समिति थे। अब संशोधित ऐतिहासिक कानून लागू होने के बाद इस कार्य में लिप्त लोगों को सही दंड मिल सकेगा। खरे ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कानून के लागू होने के बाद भी उधारी या बगैर ब्याज के लेन-देन पर कोई रोक नहीं लगी है। कहा, बैंकों के राष्ट्रीयकरण, कई निजी बैंकों की स्थापना, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी विभिन्न बैंक शाखाओं की उपस्थिति के बाद अब साहूकारी, महाजनी या सूदखोरी प्रथा के कायम रहने का कोई औचित्य नहीं था। इसकी उपस्थिति का अर्थ ग्रामीण और खासकर जनजातीय आबादी का शोषण ही था। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी लंबे समय से महाजनी प्रथा का विरोध कर रहे हैं।
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