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    झारखंड के 18 जिलों में लहलहाती है अफीम की खेती

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    Updated: Fri, 16 Sep 2016 01:27 AM (IST)

    प्रणव, रांची : प्रदेश के 24 में से 18 जिलों में अफीम की खेती होती है। 2012 से अब तक कुल 1483.5 एकड़ म

    प्रणव, रांची : प्रदेश के 24 में से 18 जिलों में अफीम की खेती होती है। 2012 से अब तक कुल 1483.5 एकड़ में लगी अफीम और पोस्ता की फसल को नष्ट किया गया है लेकिन इसकी खेती बदस्तूर जारी है। केंद्रीय गृहमंत्रालय के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डीके श्रीवास्तव ने मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को इस बाबत पत्र लिखा है। उन्होंने अफीम और पोस्ता की अवैध खेती के मामले में केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के एक्शन प्लान को लागू करने की जरूरत बताई है। साथ ही ब्यूरो के स्तर से मामले में महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए हैं। कहा है कि अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए कारगर कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। इससे हेरोइन और ड्रग तैयार होता है। इसके कारोबार में ड्रग तस्कर, फाइनांसर आदि शामिल है। यह सुरक्षा के लिए खतरनाक है।

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    झारखंड पुलिस के वरीय अधिकारी बताते हैं कि अफीम की खेती के लिए नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस रूल्स-1985 के नियम 8 के तहत लाइसेंस लेना होता है, लेकिन झारखंड में किसी के पास लाइसेंस नही हैं।

    नक्सलियों का आर्थिक तंत्र होता है मजबूत

    प्रदेश में उगाई जाने वाली अफीम के कारोबार में नक्सली संगठनों की भूमिका अहम है। इन्हीं के जरिए ड्रग तस्कर और फाइनांसर किसानों तक अपनी पैठ बनाते हैं। फायदे का बड़ा हिस्सा नक्सलियों को मिलता है। यही नक्सलियों के आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान करता है। मिले पैसे से नक्सली हथियार और विस्फोटकों का जखीरा खरीदते हैं।

    अफीम का हर चीज बिकता है

    जानकार बताते हैं कि एक एकड़ जमीन में 40 किलोग्राम अफीम की पैदावार होती है। स्थानीय बाजार में 25 हजार रुपये किलो बिकती तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक लाख रुपये तक इसकी कीमत होती है। अफीम के फल से निकलने वाला पोस्ता दाना बाजार में एक हजार रुपये किलोग्राम, फल का छिलका भी 500 से 700 रुपये प्रति किलो बिक जाता है। यूपी और कोलकाता की मंडियों तक अफीम पहुंचाई जाती है। वहां से माल चेन्नई और बाग्लादेश जाता है। पुलिस के अनुसार बनारस और गोरखपुर के व्यापारी इससे अधिक जुड़े हैं।

    इन जिलों में होती है खेती

    हजारीबाग, लातेहार, चतरा, चाईबासा, गिरिडीह, खूंटी, रांची, जामताड़ा, लोहरदगा, पाकुड़, गुमला, गढ़वा, सिमडेगा, साहिबगंज, देवघर, गोड्डा, दुमका और पलामू।

    किस वर्ष कितना फसल हुआ नष्ट

    2012-13 : 274 एकड़

    2013-14 : 158 एकड़

    2014-15 : 527.5 एकड़

    2015-16 : 474 एकड़

    गृह मंत्रालय का निर्देश

    - नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मुख्यालय के एक्शन प्लान के तहत अवैध अफीम की खेती नष्ट करें

    -हर जिले में उस स्थान की मैपिंग करना है जहां अफीम और पोस्ता की खेती होती है। गांव और थाना क्षेत्र का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।

    -सितंबर से जिला लेवल कमेटी के अधिकारी प्रखंड और थाना लेवल पर मामले में बैठक कर रणनीति बनाएं

    -अफीम की खेती से होने वाले नुकसान को लेकर जागरूकता अभियान चलाना जरूरी। खासकर उन इलाकों में जहां पर खेती होती है।

    -एफएम रेडियो, एसएमएस, टीवी, सिनेमा आदि के जरिए लोगों को जागरूक करना।

    -सभी ग्राम पंचायतों में एनडीपीएस एक्ट के संबंध में स्थानीय भाषा में एडवाइजरी जारी करनी है

    -कानून में प्रावधान किया गया है कि ग्राम पंचायत के सदस्यों और गांव के पदाधिकारियों को अफीम की खेती के संबंध में जानकारी देनी है

    -अफीम की खेती वाले इलाकों में स्वयं सहायता समूह गठित कर वहां के लोगों को रोजगार मुहैया कराई जाए ताकि वे अफीम की खेती न करें।

    -स्थानीय पुलिस, वन विभाग और एक्साइज के अधिकारी सूचना एकत्र कर अफीम की खेती को शुरूआत में ही नष्ट करें

    -प्रखंड के कृषि पदाधिकारी स्थानीय किसानों को यह जानकारी दें कि अफीम की खेती करना प्रतिबंधित है।

    -अफीम की खेती के मामले में जिनके खिलाफ मामला दर्ज है वैसे केस का अनुसंधान तेज कर कार्रवाई की जाए

    -अफीम की खेती में लगे ग्रुप और स्थानों का सेटेलाइट मैपिंग की जाए

    -वैसे फाइनांसर जो किसानों को अफीम की खेती के लिए पैसा मुहैया कराते हैं और फिर उनके फसल की खरीद करते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई

    -जिलों के डीसी-एसपी अफीम की खेती पर रोकथाम की दिशा में कारगर कार्रवाई करें।

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