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    आदिवासियों की जमीन नहीं हड़प सकेंगे गैर आदिवासी

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    Updated: Tue, 06 Oct 2015 01:59 AM (IST)

    विनोद श्रीवास्तव, रांची : छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) की धारा 71 ए को हथियार बनाकर औने-पौन ...और पढ़ें

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    विनोद श्रीवास्तव, रांची : छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) की धारा 71 ए को हथियार बनाकर औने-पौने दाम में आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री करने वालों के लिए बुरी खबर है। एक्ट में संशोधन कर सरकार इस धारा को समाप्त करने का मन बना चुकी है। इसके बाद एसएआर कोर्ट के जरिये क्षतिपूर्ति का दावा कर आदिवासी भूमि हड़पने का खेल समाप्त हो जायेगा। बहरहाल इससे संबंधित फाइल पर राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग के अलावा विधि विभाग ने अपनी मुहर लगा दी है। सरकार के इस मसौदे पर जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की सहमति के लिए फाइल कल्याण विभाग को भेजी गई है। शीतकालीन सत्र में इसे विधानसभा के पटल पर रखे जाने की तैयारी है।

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    आदिवासियों की जमीन की गैर आदिवासियों के बीच खरीद-बिक्री की पृष्ठभूमि पर गौर करें तो जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से पूर्व आदिवासी भूमि का हस्तानांतरण जमींदारों की आपसी सांठगांठ से होता था। जमींदारी जाने के बाद यह कार्य द्विसंधि से प्राप्त डिक्री के आधार पर होने लगा। 1969 में शिड्यूल एरिया रेग्युलेशन लागू होने के बाद द्विसंधि से संबद्ध 'टाइटल सूट' की मान्यता भी समाप्त कर दी गई। इस अवधि में आदिवासी भूमि के हस्तांतरण पर अल्प समय के लिए विराम लग गया। इस बीच 1981 में सीएनटी एक्ट में हुए संशोधन में रांची शहरी क्षेत्र को शामिल किया गया। इसके बाद भू-माफिया 'धारा 71 ए के द्वितीय परंतुक' को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगे। धारा 71 ए का सहारा लेकर आदिवासी भूमि का हस्तांतरण विशेष विनिमय पदाधिकारी (एसएआर कोर्ट) के न्यायालय से आपसी सांठगांठ के आधार पर करने लगे। ऐसे कार्यो से लोगों में यह भ्रांति फैल गई कि आदिवासी भूमि का हस्तानांतरण एसएआर कोर्ट से मुआवजा का दावा ठोककर किया जा सकता है, जो आज तक होता रहा।

    सरकार की सोच, क्या होगा फायदा

    धारा 71ए का दुरुपयोग कर औने-पौने कीमत में आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री वर्तमान में भी जारी है। आदिवासी भूमि के खरीदार आज की तिथि में जमीन खरीदते हैं तथा उस खरीदारी को कई दशक पुराना करार देकर क्रेता परिवार से एसएआर कोर्ट में मुआवजा के लिए मामले दर्ज करा देते हैं। फिर क्रेता-विक्रेता और पदाधिकारियों की सांठगांठ से क्रेता परिवार को दशकों पुरानी कीमत अथवा सरकारी दर पर मुआवजा भुगतान का आदेश कोर्ट से निर्गत होता है। सरकार का मानना है कि इस धारा के समाप्त होते ही मुआवजा का प्रावधान खत्म हो जायेगा, फिर क्रेता लाख चाहकर भी औने-पौने दाम पर संबंधित जमीन नहीं खरीद सकेंगे। अगर वे जमीन खरीदना चाहें तो उन्हें बाजार मूल्य अदा करना पड़ेगा। इससे आदिवासी भूमि की खरीद-बिक्री स्वत: रुक जायेगी।

    एसएआर कोर्ट में लंबित हैं 4,727 मामले

    झारखंड में धारा 71 ए के दुरुपयोग की बात करें तो इस धारा को हथियार बनाकर राज्य के 21,955 परिवारों की 21,173 एकड़ भूमि गैर आदिवासियों के नाम कर दी गई। इनमें से 21,173 मामले विशेष विनिमय पदाधिकारी (एसएआर कोर्ट) के स्तर से मुआवजा के जरिये निष्पादित कर दिये गये। वर्तमान में 4,727 आदिवासी परिवारों की 3,879 एकड़ भूमि से संबंधित मामले एसएआर कोर्ट में लंबित हैं। इनमें से सर्वाधिक 3,541 मामले रांची के हैं। 657 मामलों के साथ लातेहार दूसरे नंबर तथा 110 मामलों के साथ पाकुड़ तीसरे स्थान पर है।