साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल में दिखेगी 'स्प्रिंग थंडर'
फिल्म की शूटिंग झारखंड के विभिन्न जिलों में की गई है। सबसे ज्यादा शूटिंग नेतरहाट में की गई है। फिल्म के लेखक व निदेशक झारखंड के ही श्रीराम डाल्टन हैं।
चितरपुर (रामगढ़)। यदि मन में कुछ बड़ा करने की चाहत हो तो कोई बाधा नहीं टिक पाता है। सीसीएल रजरप्पा निवासी शशि सिंह ने सीमित संसाधन व बुलंद हौसले का मिशाल पेश कर 'स्प्रिंग थंडर' नामक फिल्म बनाई। इसकी झलक साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल में दिखेगी। कैलिफोर्निया स्थित बासा फिल्म फेस्टिवल में इसका प्रीमियर होना है। यह फिल्म यूरेनियम माफिया और आदिवासियों के जल जंगल और जमीन पर आधारित कहानी है। यूरेनियम माफिया और आदिवासियों पर बनी श्रीराम डाल्टन की इस फिल्म के निर्माता शशि सिंह हैं।
फिल्म की शूटिंग झारखंड के विभिन्न जिलों में की गई है। सबसे ज्यादा शूटिंग नेतरहाट में की गई है। फिल्म के लेखक व निदेशक झारखंड के ही श्रीराम डाल्टन हैं। इनकी जिद्द से ही यह फिल्म बनी। फिल्म में झारखंड के कलाकारों के अलावे बॉलीवुड के कलाकार आकाश खुराना, रवि शाह आदि शामिल हैं। इन्होंने फिल्म बनाने में काफी मेहनत की है। शशि सिंह रजरप्पा से मुंबई जाकर प्रोडक्शन हाउस सालपर्नी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड का निर्माण किया। इसी बैनर तले फिल्म का निर्माण हुआ है। फिल्म में शशि सिंह, मेघा डाल्टन अपने कई और साथियों के मदद से फिल्म बनाए हैं।
18 वर्ष पूर्व मुंबई गया था
शशि फिल्म निर्माता शशि सिंह की कहानी एक साधारण व्यक्ति की तरह हैं। शशि सिंह सीसीएल रजरप्पा आवासीय कॉलोनी के रहने वाले हैं। उनके पिता रजरप्पा में शॉवल ऑपरेटर थे। शशि ने चितरपुर के सांडी स्थित आरबी हाई स्कूल में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की है। इसके बाद स्नातक की पढ़ाई हजारीबाग स्थित संत कोलंबस से की। वहीं, बीएचयू बनारस से मीडिया में मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई पूरी कर मुंबई चला गया। फिल्म निर्माता शशि ने बताया मुंबई जाने के दौरान उनके पास केवल दो हजार रुपये थे। मुंबई में स्थापित होना आसान नहीं था। काफी मेहनत करनी पड़ी। तब जाकर मुंबई में काम करने की जगह मिली। शशि रजरप्पा से मुंबई जाकर प्रोडक्शन हाउस सालपर्नि मीडिया प्राइवेट लिमिटेड का निर्माण किया। इसी बैनर तले फिल्म का निर्माण हुआ है।
दिखेगी ठेकेदारों की गुंडागर्दी
साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल में दिखने वाली स्प्रिंग थंडर फिल्म झारखंड पर पूरी तरह से आधारित है। यह फिल्म झारखंड में यूरेनियम खदानों के आसपास लेने वाले जमीन अधिग्रहण, ठेकेदारों की गुंडागर्दी व राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय और छोटे किसानों और मजदूरों के जीवन पर आधारित है।