विश्व मौसम दिवस 2023: इसी तरह कुदरत से करते रहे खिलवाड़ तो पलामू बन जाएगा रेगिस्तान, इसके पीछे कई हैं कारण
झारखंड के पलामू में मौसम अचानक व तेजी से बदल रहा है। नदियां सूख रही हैं गर्मी समय से पहले ही बढ़ती जा रही है। इसके पीछे वजह वैध-अवैध रूप से पत्थरों का बड़े पैमाने पर खनन पेड़ों की कटाई जनसंख्या वृद्धि जैसे कारक शामिल हैं।
मृत्युंजय पाठक, मेदिनीनगर (पलामू)। इस साल जनवरी महीने में ही पलामू की नदियां सूख गईं। फरवरी में मई-जून जैसी गर्मी पड़ने लगी। 28 फरवरी को अधिकतम तापमान 35.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। 15 मार्च को अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। 16 को अचानक बेमौसम की बारिश शुरू हो गई। 20 मार्च को अधिकतम तापमान 27.5 डिग्री दर्ज किया गया। पांच दिन पहले लोग पंखे चलाकर सो रहे थे और बारिश होते ही तापमान में 8 से 9 डिग्री गिरावट के बाद कंबल ओढ़ने को मजबूर हो गए।
पलामू के मौसम में लगातार हो रहा बदलाव
पिछले साल यानि 2022 में सूखे से अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। 12 अप्रैल, 2022 को मेदिनीनगर का अधिकतम तापमान 44.8 डिग्री सेल्सियस पूरे देश में सर्वाधिक रहा था। साल 2022 के मार्च महीने में पारा 40 पार कर गया था। मौसम में यह बदलाव और उतार-चढ़ाव पलामू के जन-जीवन और आबोहवा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है।
इन वजहों से बिगड़ रहा पर्यावरण
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, पलामू के मौसम में बदलाव का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन के कारण ही झारखंड के पलामू में सबसे ज्यादा गर्मी, सबसे कम बारिश और सबसे ज्यादा ठंड पड़ रही है। पलामू में वैध-अवैध रूप से पत्थरों का बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है। पेड़ों की कटाई हो रही है। कच्चे के स्थान पर पक्के मकान का निर्माण हो रहा है। जनसंख्या और वाहन बढ़ने से प्रदूषण बढ़ा है। इसके कारण पलामू में गर्मी बढ़ रही है।
बारिश कम होते जाने का तो ट्रेंड बना हुआ है। बारिश का सिस्टम ना बनने से दिन-प्रतिदिन तापमान बढ़ता जा रहा है। तापमान का धीरे-धीरे बढ़ना माॅनसून, जनजीवन और फसलों को भी प्रभावित कर रहा है। कभी कम, असमय बारिश, कभी ज्यादा और बेमौसम बारिश का ट्रेंड बढ़ा है।
पत्थरों के खनन से कई इलाके बन गए ड्राइजोन
पलामू में युद्ध स्तर पर वैध-अवैध रूप से पत्थरों का खनन हो रहा है। देखते ही देखते पहाड़ गायब हो जाते हैं। इससे पर्यावरण बिगड़ रहा है। छतरपुर इलाके का भी यही हाल है। इस दौरान नियमों को ताक पर रखकर खनन किया जाता है। लीज पट्टा की शर्तों का उल्लंघन करते हुए कई खान संचालक पत्थर निकालने के लिए धरती को पंचर कर देते हैं। इससे छतरपुर इलाका ड्राइजोन में तब्दील हो गया है। यहां सालों भर जल संकट बना रहता है।
भविष्य में पलामू बन सकता है रेगिस्तान
रांची मौसम केंद्र के मौसम विज्ञानी अभिषेक आनंद कहते हैं, पलामू में वनों की तेजी से कटाई व पहाड़ियाें की तुड़ाई हुई है। यहां का मौसम अचानक अन्य जिलों से ज्यादा परिवर्तनीय हो गया है। पहले यहां 44 प्रतिशत वन था, जो अब महज 9-10 प्रतिशत शेष रह गया है। पहाड़ व पहाड़ियां पेड़ विहीन हो गईं हैं। इस कारण अचानक तापमान में उतार-चढ़ाव, काफी गर्मी तो काफी सर्दी, सूखा, ओलावृष्टि, अधिक वर्षापात की क्रिया पलामू में हो रही है। पर्यावरण के प्रति हम सभी सचेत न हुए तो पलामू रेगिस्तान बन जाएगा।
पलामू में असामान्य मौसम के ये भी हैं कारण
वह आगे कहते हैं, पलामू में असामान्य मौसम के दो प्रमुख कारण हैं। एक तो जलवायु परिवर्तन है। दूसरा यहां की भौगोलिक परिस्थिति। झारखंड में पलामू सबसे अंतिम छोर पर है। गर्मी के मौसम में गर्म हवा और ठंड के मौसम में बर्फीली हवा जब पश्चिम की ओर से आती है तो सबसे पहले पलामू में ही प्रवेश करती है। इस कारण सबसे ज्यादा गर्मी और ठंड पड़ती है। जब मानसून आता है तो पूरब की तरफ से आता है और झारखंड के सबसे अंतिम छोर पर पलामू में सबसे अंत में पहुंचता है। इस कारण बारिश भी कम होती है।
क्यों मनाते विश्व मौसम दिवस
हर साल दुनिया में 23 मार्च को विश्व मौसम दिवस मनाया जाता है। यह विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की स्थापना के रूप में मनाया जाता है, जिसे 23 मार्च 1950 को स्थापित किया गया था। आज संगठन को 73 वर्ष हो गए हैं और इसने बहुत प्रगति की है और दुनिया भर की मदद की है।
डब्ल्यूएमओ का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है। विश्व मौसम विज्ञान दिवस एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह पृथ्वी के विभिन्न मुद्दों की वैश्विक स्वीकृति पर केंद्रित है। यह दिन दुनिया भर में पृथ्वी की कई चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर आयोजित किया जाता है।