...तो झारखंड नहीं होता नाम, शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि देते हुए बोले इंदर सिंह नामधारी
झारखंड आंदोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हो गया। दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि शिबू सोरेन के बिना इस राज्य का नाम झारखंड नहीं होता। उन्होंने वनांचल के प्रस्ताव का विरोध कर झारखंड नाम को अड़कर रखा था।

जागरण संवाददाता, मेदिनीनगर (पलामू)। झारखंड आंदोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे।
सोमवार की सुबह दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाले इस जननायक के निधन से न सिर्फ झारखंड, बल्कि संपूर्ण आदिवासी समाज शोकाकुल है। उनके निधन की खबर फैलते ही राज्यभर में शोक की लहर दौड़ गई।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं होते, तो इस राज्य का नाम शायद झारखंड नहीं होता। उन्होंने आदिवासियों की अस्मिता, संस्कृति और संघर्ष को नाम में ही समाहित किया।
‘वनांचल’ नाम का हुआ था विरोध, शिबू सोरेन ने अड़कर रखा 'झारखंड'
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने झारखंड राज्य निर्माण के ऐतिहासिक क्षणों को याद करते हुए बताया कि जब बिहार से अलग राज्य गठन की प्रक्रिया अंतिम चरण में थी, तब केंद्र की एनडीए सरकार ने बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजने को कहा।
उस समय विधानसभा में कुछ नेताओं ने राज्य का नाम 'वनांचल' रखने का प्रस्ताव दिया। लेकिन शिबू सोरेन ने इसका विरोध करते हुए दो टूक कहा था कि यह राज्य 'झारखंड' ही कहलाएगा।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह नाम केवल एक भौगोलिक पहचान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आंदोलन का प्रतीक है।
भाजपा नेता सुशील मोदी ने किया था विरोध, नामधारी ने दिया साथ
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने बताया कि उस समय भाजपा विधायक दल के नेता सुशील कुमार मोदी 'वनांचल' नाम के पक्ष में थे, लेकिन उन्होंने स्वयं शिबू सोरेन के तर्कों का समर्थन किया और कहा कि
जब दक्षिण बिहार के आदिवासियों की आत्मा झारखंड नाम से जुड़ी है, तो हमें उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
उनके समर्थन के बाद ‘झारखंड’ नाम पर सहमति बनी और अंततः 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
'झारखंड शब्द ही आंदोलन की आत्मा'
इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि शिबू सोरेन न केवल एक राजनेता थे, बल्कि एक विचार, एक चेतना और एक आंदोलन का नाम थे। वह झारखंड के राजनीतिक भूगोल के नहीं, सांस्कृतिक नक्शे के निर्माता थे।
उनका योगदान केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि पीढ़ियों को प्रभावित करने वाला सांस्कृतिक धरोहर है। उनका यह ऐतिहासिक निर्णय आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
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