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    'बाय-बाय कालाजार' से राष्ट्रीय पहचान, झारखंड के पाकुड़ का 'जागृति मॉडल' बना नेशनल चैंपियन

    Updated: Fri, 26 Sep 2025 03:29 PM (IST)

    झारखंड के पाकुड़ जिले के बाय-बाय कालाजार अभियान प्रोजेक्ट जागृति को राष्ट्रीय सम्मान मिला है। इस मॉडल को अन्य जिलों में लागू करने की तैयारी है। उपायुक्त मनीष कुमार को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया है। यह अभियान सघन प्रशिक्षण जागरूकता और आईआरएस छिड़काव पर केंद्रित है जिसके कारण जिले की कालाजार एंडेमिसिटी दर घटकर 0.73% हो गई है।

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    प्रोजेक्ट जागृति के तहत चल रहा अभियान, राष्ट्रीय मंच पर मिला पाकुड़ को सम्मान।

    रोहित कुमार, जागरण पाकुड़। संताल परगना के कालाजार प्रभावित ज़िलों में अब पाकुड़ की पहल की गूंज राष्ट्रीय मंच पर सुनाई दे रही है। ज़िला प्रशासन की दूरदृष्टि और जनभागीदारी से शुरू हुआ 'बाय-बाय कालाजार' अभियान, जिसे 'प्रोजेक्ट जागृति' नाम दिया गया है, अब देश के लिए कालाजार उन्मूलन का एक राष्ट्रीय मॉडल बन चुका है।

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    इस असाधारण सफलता के लिए पाकुड़ के उपायुक्त मनीष कुमार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (NCVBDC) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कालाजार कार्यशाला में फील्ड में सर्वश्रेष्ठ अभ्यास पर प्रस्तुति के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है।

    पाकुड़ मॉडल की बहुआयामी रणनीति

    कालाजार जैसी गंभीर बीमारी की चुनौती को जड़ से मिटाने के लिए पाकुड़ ने एक सुनियोजित रणनीति अपनाई।

    1. प्रशिक्षण और मजबूत निगरानी

    • गंभीर प्रशिक्षण: अभियान से जुड़े सभी कर्मियों (एएनएम, सहिया, आईआरएस छिड़काव कर्मी) को ब्लॉक स्तर के बजाय सीधे ज़िला मुख्यालय में प्रशिक्षित किया गया ताकि वे प्रशिक्षण को गंभीरता से लें।
    • नोडल अधिकारियों की नियुक्ति: कार्यक्रम को तय मानकों के अनुसार चलाने के लिए हर प्रखंड में एक डॉक्टर को नोडल पदाधिकारी नियुक्त किया गया।
    • दैनिक समीक्षा: उपायुक्त या ज़िला स्तर के अधिकारियों द्वारा अभियान के कार्यों की नियमित समीक्षा हुई।

    2. सघन जन जागरूकता अभियान

    • लोगों में कालाजार और आईआरएस छिड़काव को लेकर जागरूकता की कमी थी। इसे दूर करने के लिए प्रशासन ने स्थानीय जन प्रतिनिधियों, धार्मिक गुरुओं, राशन डीलरों और सखी दीदियों का सहयोग लिया।
    • रात्रि चौपालों और जागरूकता रथ के माध्यम से गांवों में बीमारी के लक्षण और छिड़काव का महत्व समझाया। 
    • 'कालाजार चैंपियन': बीमारी से ठीक हो चुके लोगों को 'चैंपियन' का नाम देकर, उनके अनुभवों के माध्यम से अन्य लोगों को प्रेरित किया गया।

    3. लक्षित छिड़काव और विशेष देखभाल

    ज़िले के 192 प्रभावित गांवों (जिनमें 65 अति प्रभावित हैं) में शत-प्रतिशत आईआरएस छिड़काव पर ज़ोर दिया गया।

    • प्रोत्साहन: जिन घरों के सभी कमरों में छिड़काव हुआ, उन्हें ज़िला प्रशासन की ओर से नि:शुल्क मच्छरदानी दी गई।
    • मरीज़ों की पोषण देखभाल: कालाजार प्रभावित गंभीर मरीज़ों को दवा के साथ-साथ जल्द स्वस्थ होने के लिए न्यूट्रिशन किट (पोषण किट) का भी वितरण किया गया।

    कालाजार हुआ आउट, आंकड़े दे रहे गवाही

    प्रोजेक्ट जागृति के प्रयासों का सीधा असर कालाजार एंडेमिसिटी दर पर पड़ा है।

    • उन्मूलन की दिशा में: कालाजार उन्मूलन की ओर बढ़ने के लिए प्रखंड की एंडेमिसिटी दर 1% से कम होनी चाहिए।
    • सफलता: साल 2022 में लिट्टीपाड़ा प्रखंड की दर 1.23% थी, लेकिन चालू वित्तीय वर्ष में ज़िले के सभी छह प्रखंडों की एंडेमिसिटी दर 1% से नीचे आ गई है।
    • वर्तमान औसत: ज़िले की औसत एंडेमिसिटी दर अब महज़ 0.73% है।

    पीकेडीएल मरीज़ों की खोज

    सघन खोज अभियान के कारण कालाजार फैलाने वाले पीकेडीएल (पोस्ट-कालाजार डर्मल लीशमैनियासिस) मरीज़ों की पहचान बढ़ी है। 2022 में 65 पीकेडीएल मरीज़ मिले थे, जबकि चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 35 मरीज़ों की पहचान की जा चुकी है। इन मरीज़ों की पहचान और उपचार से नए 'वीएल' (विसेरल लीशमैनियासिस) मरीज़ों की संख्या में तेज़ी से कमी आएगी।

    पाकुड़ का यह मॉडल एक प्रेरणा है कि कैसे ज़िला प्रशासन की इच्छाशक्ति और जन सहयोग से स्वास्थ्य चुनौतियों पर विजय पाई जा सकती है।

    कालाजार उन्मूलन के लिए सिक्स आइ कार्ययोजना पर काम किया जा रहा है। पीकेडीएल मरीज को खोजना सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण था। यही कालाजार के वाहक होते हैं। विशेष अभियान के तहत छिपे हुए पीकेडीएल मरीजों को खोज निकाला गया। इन मरीजों की पहचान हो जाने अब नये मरीजों की संख्या में कमी आने लगेगी। कालाजार के लिए किए गए आइआरएस छिड़काव का फायदा यह हुआ कि इस बार जिले में मलेरिया नियंत्रण में रहा।

    -मनीष कुमार, डीसी, पाकुड़