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    पाकुड़ के नन्हे बच्चे ने किया बड़ा कारनामा, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज कराया अपना नाम

    Updated: Sat, 02 Aug 2025 08:00 AM (IST)

    पाकुड़ के ज्यांशु मंडल सिर्फ दो साल चार महीने की उम्र में इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। उन्होंने अंग्रेजी में सभी सवालों के जवाब देकर फल सब्जी पक्षी और जानवरों के नाम बताकर सबको चकित कर दिया। ज्यांशु ने हिंदी अंग्रेजी और बांग्ला में कविताएं भी सुनाईं।

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    ज्यांशु ने इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया

    गणेश पांडेय, पाकुड़। "पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं" यह कहावत पाकुड़ के नन्हें ज्यांशु मंडल पर एकदम सटीक बैठती है। महज दो साल चार माह की उम्र में विलक्षण प्रतिभा के धनी ज्यांशु ने इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है।

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    इसी वर्ष दो जुलाई को ज्यांशु का नाम इंडिया बुक आफ रिकार्ड्स में नामांकित किया गया। सात दिनों के बाद उसे अपने हुनर का प्रदर्शन करने का अवसर मिला। उसने सभी सवालों का जवाब अंग्रेजी में दिया और जानवर, मछली, सब्जी, फल, पक्षी के नाम बताकर सभी को चौंका दिया। इतना ही नहीं, उसने चार-चार कविताएं अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला में सुनाई। 31 जुलाई को उसे इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स की ओर से सम्मानित किया गया।

    इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स के साथ ज्यांशु के माता-पिता

    ज्यांशु मंडलशहर के कालिकापुर का निवासी है। ज्यांशु के पिता गोपाल मंडल एक होटल में मैनेजर हैं, जबकि माता सुस्मिता पेंटिंग इंस्टीच्यूट चलाती हैं। अपने मां-बाप के इकलौते बेटे ज्यांशु ने छोटे कदमों से बड़ा इतिहास रच दिया है। उसने यह साबित कर दिया है कि उम्र से नहीं, हौसले से मंजिलें तय होती हैं।

    डेढ़ वर्ष की उम्र से ही माता-पिता ने मिलकर उसके हुनर को निखारना शुरू कर दिया। ज्यांशु को अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला भाषा में प्राथमिक शिक्षा, व्यवहारिक जीवन, कौशल विकास, चित्रकला और नैतिक शिक्षा में पारंगत बनाया गया। उम्र के साथ-साथ ज्यांशु की प्रतिभा और भी निखरने लगी।

    दो वर्ष का होते ही उसकी अलग प्रतिभा सामने आने लगी। अपने कौशल से उसने सबको बता दिया कि वह इंडिया बुक आफ रिकार्ड्स में अपना हुनर दिखाने के लिए पूरी तरह तैयार है।

    ज्यांशु के पिता गोपाल मंडल ने बताया कि उनके बेटे में एक वर्ष की उम्र से ही प्रतिभा झलकने लगी थी। माता सुस्मिता का कहना है कि जीत और हार आपकी सोच पर निर्भर करती है। अगर ठान लो तो जीत संभव है। अभी मां उसे चित्रकला का भी प्रशिक्षण दे रही हैं। उनका कहना है कि ज्यांशु में सीखने की ललक है और वह ध्यानपूर्वक चित्रकला सीख रहा है।