नदी काटे गांव और कूड़ा नदी को
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दिनेश, मधेपुरा : एक तरफ नदी के कटाव से मुरौत गांव वाले परेशान है तो वहीं शहर में हालत इसके ठीक विपरीत है। यहां नदी में कूड़ा डाले जाने से उसके अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वह सिकुड़कर नाले में तब्दील हो गई है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि मधेपुरा नगर परिषद के पास छह दशक बाद भी कूड़ा फेंकने के लिए कोई अपनी जमीन नहीं है। वह कूड़ा शहर में जहां भी खाली स्थान पाती है वहां फेंक देती है। अब वर्तमान जब जगह का खाली स्थान भर चला है तो एक मात्र सहारा नदी ही बच गई है। लिहाजा उसी में कचरा, मरे हुए जानवर के शव आम लोगों के साथ ही साथ मधेपुरा नगर परिषद करने लगी है। जिसके चलते नदी का पानी विषैला होने लगा हैं। इतना ही नहीं नदी का स्तर भी ऊंचा होने लगा है। लोगबाग कभी नदी के जल को पवित्र मानकर उसके किनारे नहाने धोने के साथ ही साथ श्राद्ध कर्म को करते थे। इतना ही नहीं शौच के लिए भी नदी के किनारे को ही इस्तेमाल करते थे। लेकिन अब शहर के दोनों किनारे पर बहने वाली नदी गोमती और भिरखी लोगों की ओर से फेंके जाने वाले कूड़ा करकट से सिकुड़ कर नाली में तब्दील हो चली है। उसके जमीन का स्तर पुल पर खड़ा होकर आसानी से देखा जा सकता है। यही हाल रहा तो नदी के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो जाएगा। जिस मलमूत्र और कूड़ा करकट का वाहक नदी बनी हुई है। उसके किनारे आने वाले दिनों में कोई भी कार्य कर पाना मुश्किल हो जाएगा। गंदिला पानी यह बताता है कि लोगों ने नदी के साथ किस तरह का मजाक करना शुरु कर दिया है।
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हर रोज निकलता है तीन टन कूड़ा
26 वार्डो वाले मधेपुरा जिला मुख्यालय पर हर रोज लगभग तीन टन कूड़ा निकलता है। इसमें सूखा और गिला कचरा दोनों शामिल रहता है। यानी 88170 की आबादी वाले इस शहर में तीन टन कूड़ा कहां डाला जाता होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। नगर परिषद के तत्कालीन चेयरमैन विजय कुमार विमल बेबाकी के साथ कहते हैं कि शहर में कूड़ा फेंकने के लिए कोई जगह चिन्हित नहीं की गई है। जहां आम लोग कूड़ा फेंकते है वहीं परिषद भी अपने कूडे़ डाल देती है। कुछ समय पहले 13 वें वित्त आयोग की ओर से जमीन खरीदने के लिए आंवटन मिला था। लेकिन बाजार में आसमान छूती जमीन की कीमत के मुकाबले भेजी गई राशि ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही थी। लिहाजा राशि अब बैंक के खाते की शोभा बढ़ा रही है।
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60 सफाई कर्मी करते हैं सफाई
जिला मुख्यालय की सफाई व्यवस्था 60 से लेकर 65 सफाई कर्मियों के हवाले है। जो टै्रक्टर के साथ शहर की सफाई करते हैं और सड़क किनारे जहां भी खड्ढ़ा देखा वहां डाल देते हैं। इनमें पांच सफाई कर्मी अस्थाई है। शेष संविदा पर रखे गए हैं। सफाई कर्मियों की इतनी बड़ी फौज होने के बाद भी शहर में कूड़ा यहां वहां फेंक रहता है। लोग भी कूड़ा यहां वहां फेंकने के आदि हो गए हैं। यही कारण है कि कूड़ा इस शहर की पहचान बन गई है। लगभग यही सूरत सुपौल और सहरसा की भी है।
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नहीं है ट्रीटमेंट प्लांट
कूडे़ के निस्तारण के लिए मधेपुरा में कोई ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। महानगरों में ट्रीटमेंट प्लांट होने से वहां कूडे़ का निस्तारण हो जाता है। इसके अभाव में ही यहां कूड़े का निस्तारण नहीं हो पाता है। जिसके चलते यह एक गंभीर समस्या बनती चली जा रही है। दूसरे देशों में गंदगी करने पर सजा का प्रावधान है। जबकि इसका स्थानीय संस्थाओं में अभाव है। यही कारण है कि लोगों को गंदगी करने में डर नहीं लगता।
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नदी के स्वरुप के साथ खिलावाड़ ठीक नहीं ?
कोसी नदी के स्वरुप में बदलाव का परिणाम लोग वर्ष 2008 में भुगत चुके है। यदि अब उसके साथ कूड़ा डालकर उसे पाटने का प्रयास किया गया तो वह बरसात के दिनों में अपना विकराल रुप धारण कर आसपास के गांवों में घुस सकती है। इसलिए जरुरी है उसके स्वरुप से खिलवाड़ बंद किया जाए।
आजादी के छह दशक बाद भी शहर में कूड़े के निस्तारण के लिए जगह का नहीं होना जनप्रतिनिधियों के नेतृत्व पर एक सवालिया निशान है?
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'यहां कूड़ा फेंकने के लिए कोई जमीन चिन्हित नहीं की गई है,जहां आम लोग कूड़ा फेंकते हैं वहीं मधेपुरा नगर परिषद भी कूड़ा डाल देती है।'
विजय कुमार विमल
निवर्तमान चेयरमैन मधेपुरा नगर परिषद
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