सिस्टम रुका तो जागी इंसानियत, 22 वर्षों से जिंदगियां बचा रहे गालिब, अपनी जेब से करा चुके हैं सरकारी एंबुलेंस की मरम्मत
लातेहार में एंबुलेंस चालक मो. गालिब 22 वर्षों से अपनी सेवा दे रहे हैं। वे हर कॉल पर अपनी नींद और भूख त्याग कर लोगों की जान बचाने के लिए तत्पर रहते हैं ...और पढ़ें

मो. गालिब, इमरजेंसी में ग्रामीणों के लिए भरोसे का नाम।
उत्कर्ष पाण्डेय, जागरण लातेहार। लातेहार की रातें अक्सर शांत रहती हैं, लेकिन जैसे ही एंबुलेंस की सायरन गूंजती है, वह खामोशी टूट जाती है। उस आवाज में डर भी होता है, दुआ भी और उम्मीद भी।
इसी सायरन की हर पुकार पर 22 वर्षों से मो. गालिब अपनी थकान, भूख और नींद छोड़कर निकल जाते हैं। वह जानते हैं कि हर काल के पीछे किसी की जिंदगी टंगी होती है। स्टेयरिंग थामते वक्त उनके हाथ नहीं कांपते, लेकिन दिल जरूर भारी हो जाता है।
22 साल, हजारों काल और अनगिनत जिंदगियां
सदर अस्पताल लातेहार में चालक के रूप में 22 वर्षों की सेवा में मो. गालिब ने सिर्फ किलोमीटर नहीं गिने, उन्होंने धड़कनें गिनी हैं। कई बार मिनटों की देरी ने मौत को मात दी, और कई बार समय हाथ से फिसल गया। गालिब कहते हैं हर मरीज मेरे लिए नया इम्तिहान होता है।
टूटा दरवाजा, जगा हुआ जमीर
कुछ दिन पहले एंबुलेंस का पीछे का दरवाजा टूट गया। सिस्टम की रफ्तार सब जानते हैं फाइलें चलतीं, आदेश आते, वक्त गुजरता। लेकिन गालिब ने इंतजार नहीं किया। उन्होंने अपनी जेब से पैसे निकाले और मरम्मत करा दी। उनका साफ कहना है, अगर एक भी मरीज उस दरवाजे की वजह से घायल हो जाता, तो मेरी नौकरी बेमानी होती।
एंबुलेंस नहीं, सांसों की जिम्मेदारी
गालिब एंबुलेंस को मशीन नहीं मानते। वह उनके लिए सांसों की जिम्मेदारी है। ड्यूटी पर पहुंचने से पहले वे ब्रेक, सायरन, लाइट, स्ट्रेचर सब कुछ खुद देखते हैं। सहकर्मी कहते हैं, कि गाड़ी गालिब की नहीं हो तो भी देखभाल वही करेंगे।
रफ्तार होती है तेज, लेकिन इंसानियत की
इमरजेंसी में एंबुलेंस तेज होती है, लेकिन लापरवाही से नहीं। उबड़-खाबड़ रास्तों पर ऐसे गाड़ी चलाते हैं कि मरीज को कम से कम झटका लगे। कई डॉक्टर मानते हैं कि मरीज को स्थिर हालत में पहुंचाने का बड़ा कारण गालिब की समझदारी भरी ड्राइविंग होती है।
ग्रामीणों के मोबाइल में जीवन नंबर के नाम से सेव
लातेहार के दर्जनों गांवों में इमरजेंसी के वक्त एक ही नंबर घुमाया जाता है मो. गालिब का। लोग अस्पताल से पहले उन्हें फोन करते हैं। वे गांव पहुंचते हैं, मरीज को संभालते हैं, स्वजनों को हिम्मत देते हैं। कई लोगों के मोबाइल में उनका नाम एंबुलेंस भैया एवं जीवन रक्षक सेव है।
वे स्ट्रेचर उठाते हैं, मरीज को पानी पिलाते हैं, रोते स्वजनों को ढांढस देते हैं। कई बार वे रास्ते भर मरीज का हाथ थामे रहते हैं, मानो कह रहे हों बस थोड़ी देर और।
एक आदमी, एक एंबुलेंस और पूरा लातेहार
आज जब सरकारी सिस्टम पर सवाल उठते हैं, मो. गालिब जैसे लोग जवाब बनकर खड़े हैं। वे बताते हैं कि फाइलों से नहीं, फैसलों से जिंदगियां बचती हैं। सदर अस्पताल लातेहार की एंबुलेंस जब भी सड़क पर निकलती है, तो लोग जानते हैं कि आज फिर कोई है, जो बिना किसी स्वार्थ के किसी की सांसें बचाने निकल पड़ा है।
यही वजह है कि यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि सिस्टम के बीच खड़ी इंसानियत की कहानी है जिस पर रुकना, सोचना और बात करना जरूरी हो जाता है।
मेरी आवाज भर आती है जब एंबुलेंस में कोई दम तोड़ देता है, लगता है जैसे कुछ मेरा भी चला गया। जब कोई बच जाता है तो ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करता हूं कि उसने मुझे माध्यम बनाया।
- मो. गालिब, एंबुलेंस चालक सदर अस्पताल लातेहार।
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मो. गालिब जैसे कर्मी स्वास्थ्य व्यवस्था की ताकत हैं। संसाधन सीमित हो सकते हैं, लेकिन जब सेवा की नीयत इतनी मजबूत हो, तो हर काम में सुविधा होती है। गालिब ने वर्षों से जिस समर्पण से काम किया है, वह सराहनीय है।
-डॉ. राजमोहन खलखो सिविल सर्जन, लातेहार।

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