आदिवासी बेटियों के लिए काला कानून है कस्टमरी एक्ट
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लातेहार: बेटे व बेटियों को बराबरी का हक दिलाने के दावे सरकार के स्तर पर रोज किए जाते हैं, परंतु आदिवासी समाज में बेटियों को उनका हक नहीं मिल रहा। 'आदिवासी कस्टमरी कानून' इसमें सबसे बड़ा बाधक बना हुआ है। इस कानून के तहत उन्हें पैतृक संपत्ति से वंचित रखा गया है।
जानकारी के अनुसार हिन्दू वंशवाद अधिनियम में सरकार ने संशोधन करते हुए वर्ष 2005 में यह प्रस्ताव पारित किया था कि पैतृक संपत्ति में बेटियों का अधिकार बेटों के समान ही होगा। मगर आदिवासी परंपरागत कानून में संशोधन नहीं होने से आदिवासी बेटियां खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं।
क्या है नियम: 'आदिवासी कस्टमरी कानून' के तहत अगर आदिवासी दंपती को पुत्र नहीं है तो उनकी संपत्ति के उत्तराधिकारी उस परिवार के निकटतम पुरुष संबंधी होंगे।
लोहरा समाज में नहीं है स्पष्ट नियम : आदिवासियों के 24 समूहों में इस कानून के तहत आदिवासी बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार से वंचित रखा गया है। इससे इतर लोहरा समाज में इस प्रकार का कोई स्पष्ट नियम नही है। कस्टमरी लॉ विशेषज्ञ अधिवक्ता राजीव रंजन पांडेय भी यही बताते हैं।
कोट
कस्टमरी कानून हम आदिवासी बेटियों के लिए काला कानून है। इस नियम के चलते हमें अपनी पैतृक संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है। सरकार इस कानून में संशोधन करे।
शांति किंडो,महिला समाजसेवी सह आदिवासी मामलों की जानकार।
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