कोडरमा में डेढ़ वर्षीय बच्ची की मौत, परिजनों ने कफ सीरप से मौत का लगाया आरोप
कोडरमा में खांसी की सीरप पीने से डेढ़ वर्षीय बच्ची की मौत हो गई। परिजनों ने दूधीमाटी चौक स्थित मेडिकल दुकान से सीरप खरीदा था। सीरप पीने के बाद बच्ची क ...और पढ़ें
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बच्ची की हुई मौत। (जागरण)
संवाद सहयोगी, कोडरमा। खांसी का सीरप पीने से कोडरमा में डेढ़ वर्षीय बच्ची की मौत का एक मामला सामने आया है। मृत बच्ची की पहचान रवि भुइयां की पुत्री रागिनी कुमारी के रूप में हुई है, जिसकी उम्र लगभग डेढ़ साल बताई जा रही है।
इस दर्दनाक घटना के बाद परिजनों में कोहराम मचा हुआ है। हालांकि, पीड़ित परिवार ने इसकी शिकायत की है और न ही बच्ची के शव का पोस्टमार्टम ही कराया।
कोडरमा थाना क्षेत्र अंतर्गत लोकाई भुइयां टोला की रहने वाली बच्ची की मां ने बताया कि पिछले दो दिनों से रागिनी को खांसी की शिकायत थी। इसके बाद उन्होंने दूधीमाटी चौक के समीप स्थित मेडिकल दुकान से जाकर दवा देने को कहा।
इसके बाद बच्ची की खांसी को देखते हुए दुकानदार ने खांसी का सीरप टिक्सीलिक्स दिया था। गुरुवार शाम सीरप का सेवन करने के कुछ समय बाद ही बच्ची की तबीयत अधिक बिगड़ने लगी। वे तत्काल बच्ची को कोडरमा सदर अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां मौजूद चिकित्सकों ने जांच के बाद बच्ची को मृत घोषित कर दिया।
घटना के बाद से स्वजन का रो-रोकर बुरा हाल है। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, बच्ची के स्वजन ने कफ सीरप पीने के बाद तबीयत अधिक बिगड़ने की बात कही थी। उनसे शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।
इसके बाद वे बच्ची का शव लेकर चले गए। वहीं, इस घटना को लेकर सिविल सर्जन डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि उन्हें घटना की सूचना प्राप्त हुई है। उन्होंने घटना को लेकर ड्रग इंस्पेक्टर को जांच कर उचित कार्रवाई का निर्देश दे दिया है।
डॉक्टर को दिखाने के बजाय दुकान से खरीद लेते हैं दवा
आज भी ग्रामीण इलाकों में आज भी तबीयत खराब होने पर लोग डॉक्टर से परामर्श लेने के बजाय सीधे दवा दुकानों से दवा खरीद लेते हैं। खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग इलाज के खर्च से बचने के लिए दुकानदार को अपने लक्षण बता देता है और उसी आधार पर दवा ले लेता है।
कई बार दुकानदार बीमारी की सही जांच किए बिना दवा दे देते हैं, जिससे मरीज की हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ जाती है। गलत दवा, गलत मात्रा और एंटीबायोटिक का मनमाना उपयोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दवाओं के दुष्प्रभाव बढ़ते हैं और बीमारियां जटिल रूप ले लेती हैं। जागरूकता और सस्ती, सुलभ चिकित्सा सुविधा ही इस समस्या का समाधान है।

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