Koderma वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र को खनन माफियाओं ने बना दिया वीरान, चलाई जा रहीं माइका की दर्जनों अवैध खदानें
कोडरमा वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र में खनन माफियाओं ने माइका की अवैध खदानें चलाकर क्षेत्र को वीरान बना दिया है। वन विभाग की निष्क्रियता के कारण अवैध खनन धड़ल्ले से चल रहा है, जिससे वन्यजीवों और पर्यावरण को खतरा है। स्थानीय लोगों ने वन विभाग पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है।

कोडरमा वन्यप्राणी आश्रयणी क्षेत्र खनन कार्य के लिए बनाया डेरा।
संवाद सहयोगी, कोडरमा। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाने वाला कोडरमा वन्यप्राणी आश्रयणी इन दिनों खनन माफियाओं के शिकंजे में बुरी तरह जकड़ गया है। जिस क्षेत्र को वन्य जीवों का सुरक्षित आश्रय माना जाता है, वह अब अवैध खनन का गढ़ बन चुका है।
छतरबर जंगल से लेकर बिहार की सीमा तक फैला यह पूरा इलाका आश्रयणी क्षेत्र घोषित है, जहां किसी भी प्रकार के गैर–वानिकी कार्य पर पूर्ण प्रतिबंध है। बावजूद
इसके यहां वर्षों से खुलेआम अवैध माइका खनन का खेल चल रहा है।
सोमवार को अहले सुबह वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र के डीएफओ सूरज को मिली सूचना के आधार पर वन विभाग एवं पुलिस की टीम ने छापेमारी की तो यहां का नजारा देख पूरी टीम चकित रह गई। यहां दर्जनों छोटे-बड़े अवैध खदान तैयार कर दिए गए हैं।
क्षेत्र से जब्त की गई खनन कार्य के लिए लाई गई जेसीबी मशीन
यहीं से टीम ने एक जेसीबी मशीन जब्त की है। बताया जा रहा है कि टीम के आने के सूचना के बाद खनन माफिया जेसीबी डोजर मशीन के चक्के का हवा निकालकर भाग गए थे, ताकि दुर्गम जंगली क्षेत्र से टीम जेसीबी को आसानी से नहीं ले जा सके।
वहीं जंगल क्षेत्र के हालात इतने भयावह हैं कि कई किलोमीटर तक जेसीबी और भारी मशीनों ने जंगल का स्वरूप ही बदल दिया है। जहां कभी हरियाली लहराती थी, अब गहरे गड्ढे और उखड़ी मिट्टी दिखाई देती है। हजारों पेड़-पौधे भी इस अवैध कारोबार की भेंट चढ़ चुके हैं।
इससे वन विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि यह व्यापक अवैध खनन बिना विभागीय कर्मियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं लगता। कभी-कभार खानापूर्ति की कार्रवाई होती जरूर है, पर उसका प्रभाव नगण्य है। इसका नतीजा यह हुआ कि खनन माफियाओं का तंत्र और अधिक मजबूत होता चला गया।
जानकारी के अनुसार, इस क्षेत्र में वर्षों पहले कई माइका माइंस संचालित थे, पर आश्रयणी क्षेत्र घोषित होने और कठोर वन कानून लागू होने के बाद सभी माइंस बंद कर दिए गए थे। लेकिन वन माफिया ने इन्हीं पुराने गड्ढों के आसपास फिर से अवैध गतिविधियां शुरू कर दीं।
रात-दिन होने वाले खनन से वन विभाग को भनक तक नहीं मिल पाती या फिर मिलती है और अनदेखी कर दी जाती है, यह भी बड़ा सवाल है। हाल ही में जंगल के भीतर टेंट और सोलर लाइट लगाकर रात में चोरी-छिपे खनन करने का मामला भी सामने आया है, जो माफियाओं की तैयारी और बेखौफ गिरोह का प्रमाण है।
बहरहाल टीम ने जब्त की गई मशीन को कोडरमा वन विभाग परिसर में रखा है। वन विभाग अब इस अवैध खनन से जुड़े माफियाओं की पहचान कर उनके खिलाफ वन अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। अभियान में वनपाल मो. उस्मान अंसारी, सिकंदर कुमार, छत्रपति शिवजी, दुर्गा महतो सहित हजारीबाग से आई विशेष टीम शामिल थी।
आश्रयणी क्षेत्र के कारण रुका फोर लेन निर्माण
कोडरमा घाटी क्षेत्र से होकर गुजरने वाले प्रस्तावित फोर लेन रोड निर्माण को भी अदालत ने वन्य जीवों की सुरक्षा को देखते हुए रोक दिया था। आश्रयणी क्षेत्र होने की वजह से निर्माण कार्य को अनुमति नहीं मिली, और अब यह परियोजना अधर में लटक गई है। विडंबना यह है कि जहां सडक़ निर्माण जैसे वैध कार्य पर रोक है, वहीं अवैध खनन बिना रोक-टोक जारी है।

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