बारिश के मौसम में ही उफनती हैं नदियां
कोडरमा : कभी सालों भर कल-कल बहनेवाली नदियां अब बरसाती नदी बनकर रह गई है। ग्लोबल वार्मिग, कम वर्षा और पर्यावरण असंतुलन का असर नदियों के प्रवाह पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है।
ये नदियां सूखीं
जिले के चंदवारा, जयनगर और मरकच्चो से होकर बहनेवाली बराकर नदी, चंदवारा के गौरी नदी, दोमुहानी नदी, दुग्धी नदी, जयनगर के अक्तो एवं हरहरो नदी, मरकच्चो के केशो और पंचखेरो नदी और सतगावां के सकरी नदी की स्थिति यही है।
दो दशक पूर्व तक ये सभी नदियां स्थानीय गांवों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक महत्व की नदी मानी जाती थी, लेकिन आज स्थिति वैसी नहीं है। आज इन नदियों में अधिकतर की उपयोगिता केवल बालू उठाव तक सीमित रह गई है।
बांध बनने के बाद बराकर भी बरसाती नदी बनी
चंदवारा के तिलैया डैम में क्षेत्र की सबसे बड़ी बराकर नदी में डैम बन जाने के बाद शेष नदी पूरी तरह से बरसाती नदी बन गई है। बराकर नदी पर स्थित तिलैया डैम हालांकि पूरे इलाके के सामाजिक और आर्थिक महत्व की नदी है।
इस नदी में बांध बन जाने के बाद जहां पनबिजली का उत्पादन हो रहा है, वहीं झुमरीतिलैया, कोडरमा, बरही एवं चौपारण क्षेत्र में पेयजल की आपूर्ति इसी नदी के पानी से होती है। इसके अलावा कृषि कार्य एवं मत्स्य पालन में भी नदी के पानी का उपयोग होता है।
वहीं जयनगर के अक्तो एवं हरहरो नदी में भी केवल बरसात के दिनों में ही पानी का बहाव होता है। इन दोनों नदियों से भी अत्यधिक बालू की निकासी से जलस्तर काफी नीचे चला गया है।
यहीं स्थिति मरकच्चो के केशो, पंचखेरो और कोडरमा के झरखी नदी की भी है। हालांकि ये दोनों नदियां बड़ी नदी है। दोनों पर डैम का भी निर्माण हो रहा है, लेकिन इसके पानी का प्रबंधन नहीं होने से ये जनोपयोगी साबित नहीं हो पा रही है।
इधर, सतगावा की सकरी नदी काफी बड़ी और चौड़ी है। यह नदी सतगावां के लिए जीवनदायी है। नदी के दोनों किनारे दर्जनों गांव स्थित है। जहां के लोग इसके पानी से अपने खेतों की पटवन करते हैं। पहले जहां इस नदी में सालोभर पानी रहती थी वहीं अब यहां बरसात के बाद छह माह तक ही पानी रहता है। गर्मी के दिनों में यह नदी भी पूरी तरह से सूख जाती है।
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