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    पारंपरिक रूप से की गई आषाढ़ी पूजा

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 20 Jun 2021 08:31 PM (IST)

    सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत रविवार को कालेट में सरना धर्मावलंबियों ने अषाढ़ी पूजा की। पूजा में गांव के धनी पाहन की पत्नी शंकरी पहनाई के नेतृत्व में कई महिलाएं शामिल हुईं।

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    पारंपरिक रूप से की गई आषाढ़ी पूजा

    संवाद सूत्र, तोरपा : सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत रविवार को कालेट में सरना धर्मावलंबियों ने अषाढ़ी पूजा की। पूजा में गांव के धनी पाहन की पत्नी शंकरी पहनाई के नेतृत्व में कई महिलाएं शामिल हुईं। पारंपरिक परिधान में महिलाएं सिर पर लोटा में पानी भरकर पीपल व इमली के संयुक्त पेड़ के पास पूजा स्थल पर सूर्योदय से पहले पहुंचे। जहां विधिविधान के साथ सरना माता की पूजा की गई। इसके तहत सिदूर, अरवा सूता, अनुष्ठान, जलाभिषेक कर मानसून का स्वागत करते हुए भगवान सिगबोगा से अच्छी बारिश की कामना की गई। इस अवसर पर शंकारी पहनाई ने कहा कि एक स्थान पर पीपल व इमली का संयुक्त पेड़ कोई साधारण पेड़ नहीं है, सैकड़ों साल पुरानी है। विधिविधान से पूजा-अर्चना करने के बाद शुद्ध जल चढ़ाने के बाद क्षेत्र में झमाझम बारिश होती हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव धान खेती पर पड़ता हैं। मानसून के साथ-साथ खेती भी अच्छी होती है। पूजा-अनुष्ठान में मुख्य रूप से ओनदाय गुड़िया, खुशबू धान, पालो पहनाई, एतवारी पहनाई, देवगी गुडिया, बीजी गुडिया, बसंती गुडिया, बुदा मुंडा, निकोदिम पाहन, मसीह गुड़िया, बुधराम गुडिया, सुमित गुडिया सहित कई लोगों का सहयोग रहा।

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    क्या है मान्यता

    देवी गुडी में मुख्य पाहन धनी पाहन ने अषाढ़ी पूजा में लाल, सफेद व काला मुर्गा को दाना खिला कर चराया। इस तरह से पूजा करने से गांव की अप्रिय घटनाओं से बचाने के लिए की जाती है। धनी पाहन ने बताया कि आदिवासी समाज में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह त्योहार अषाढ़ महीना चढ़ने के बाद मनाया जाता है। अच्छी बारिश, अच्छी खेतीबाड़ी व अपने गांव-टोले में रोग-दुख से मुक्ति के लिए हर वर्ष विभिन्न मौजा में अलग-अलग मनाया जाता है। इसका सकारात्मक प्रभाव धान खेती पर पड़ता है।