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    Lok Sabha Polls 2019: जिलिंगा का जंगल पार नहीं कर सकी उज्ज्वला योजना

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Sat, 06 Apr 2019 02:40 PM (IST)

    Lok Sabha Polls 2019. जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर जिलिंगा गांव। यहां पहुंचने के लिए भंडरा से लगभग ढाई किलोमीटर जंगलों के बीच से गुजरना पड़ा।

    Lok Sabha Polls 2019: जिलिंगा का जंगल पार नहीं कर सकी उज्ज्वला योजना

    खूंटी, [कंचन कुमार]। जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर जिलिंगा गांव। यहां पहुंचने के लिए भंडरा से लगभग ढाई किलोमीटर जंगलों के बीच से गुजरना पड़ा। दोनों ओर दूर-दूर तक घने जंगल। बीच से चमचमाती सड़क डाड़ीगुटु तक निकलती है। सड़क बीहड़ों के बीच से गुजरी है, लेकिन सुनसान नहीं है।

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    दिन में काफी संख्या में लोग पैदल आते-जाते मिल जाते हैं। भाड़े की कुछ छोटी गाडिय़ां भी चलती हैं। रास्ते में मद्देनाग, मुनिका तथा दयामनी तीन लड़कियां मिलीं। भंडरा स्कूल से पढ़कर पैदल आ रही थीं। दयामनी ने बताया कि गांव में स्कूल नहीं है। नित्य ढाई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाती है।

    उज्ज्वला योजना का आवेदन लौटा दिया

    गांव में सड़क किनारे पेड़ के नीचे सात-आठ युवक जमा हैं। सभी अपने मस्त। मैंने युवकों से सरकारी योजनाओं का हाल पूछा। साथ ही चुनावी माहौल जानने की कोशिश की। युवकों ने बताया कि गांव में एक भी परिवार को उज्ज्वला योजना से गैस कनेक्शन नहीं मिला है।

    रंजीत सांगा ने बताया कि उज्ज्वला योजना के तहत 40 आवेदन भरकर भेजा गया। लेकिन कुछ और पेपर की मांग कर आवेदन लौटा दिया गया। इसके बाद पूरा मामला ठंडा पड़ गया है। हर घर के पास लकडिय़ों के ग_र दिख रहे हैं।

    गांव में सिंचाई के साधन नहीं

    गांव तक बिजली पहुंच गई है। लेकिन कनेक्शन बहुत कम लोगों ने ले रखा है। 132 घरों वाले जिलिंगा गांव के लोग पूर्णत: खेती एवं मजदूरी पर आश्रित हैं। सिंचाई के साधन नहीं होने के कारण सिर्फ धान की फसल होती है। सिंचाई के लिए लगी लिफ्ट इरिगेशन की मशीन चोरी हो गई है। पुन: मशीन नहीं लगाई गई। लोग दिहाड़ी मजदूरी करने शहर जाते हैं। जब काम नहीं मिलता तो खाली हाथ लौट जाते हैं।

    रवि प्रधान कहता है, गांव में पेयजल की बहुत किल्लत है। लाइट की भी उचित व्यवस्था नहीं है। विकास योजनाएं गांव तक ठीक से नहीं पहुंच पा रहीं हैं। लेकिन सभी लोग आशान्वित हैं कि संभवत: चुनाव बाद उन्हें भी योजनाओं का लाभ मिलने लगेगा। थोड़ी दूर आगे बढऩे पर पुन: कुछ युवकों की टोली मिली।

    एक युवक के हाथ में टॉर्चनुमा टेपरिकॉर्डर है। तेज आवाज में गाना बज रहा है- नून रोटी खाएंगे, जिनगी...। दूर-दूर तक हडिय़ा की मादकता की गंध फैल रही है। युवक के साथ बुजुर्ग भी नशे में मदमस्त हैं। पूर्णत: बेफिक्र। पूछने पर कहते हैं, मुझे घर नहीं मिला। लिखकर ले गया है बाबू। तुम बताओ न, आज मिल जाएगा?

    बिचौलियागिरी विकास में सबसे बड़ी बाधा

    कुछ दूरी पर महिलाएं बैठी हुई हैं। समाज एवं परिवार की समृद्धि के साथ देश-दुनिया की चर्चा चल रही है। अनजान व्यक्ति देखकर थोड़ी झिझकती हैं। लेकिन परिचय देने के बाद खुलकर बातें करती हैं। चांदो सांगा ने बताया कि गांव में लोगों को शौचालय मिले हैं। लेकिन कई शौचालय अधूरे पड़े हैं। दूसरी किश्त की राशि मिली ही नहीं है। आठ लोगों को प्रधानमंत्री आवास भी मिला है।

    सोमवारी सांगा एवं भिजी सांगा कहती हैं कि महिला मंडल गठित कर वे लोग परिवार एवं समाज में आत्मनिर्भरता लाना चाहती हैं। लेकिन पुरुषों का पूरा सहयोग नहीं मिलता। जॉनी नाग एवं शीला सांगा बताती हैं कि सरकारी स्तर से गांवों के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन मॉनीटरिंग के अभाव में योजनाएं धरातल पर ठीक से नहीं उतर पा रहीं।

    बिचौलियागिरी के कारण योजनाएं लटक जाती हैं। जिम्मेवार अधिकारी को इसे देखने की फुर्सत ही नहीं। कन्यादान योजना, लक्ष्मी लाडली योजना समेत महिलाओं के हित में कई योजनाएं संचालित हैं। वे लोग आपस में इसके बारे में चर्चा भी करती हैं। कहती हैं, सरकार की मंशा विकास की है। लेकिन बिचौलियागिरी इसमें सबसे बड़ी बाधा है।