भागवत कथा में दैत्य हिरण्यकश्यप वध का वर्णन
बिदापाथर (जामताड़ा) क्षेत्र की सिमलडूबी पंचायत के बड़वा गांव स्थित राधा गिरिधारी मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह प्रवचन के तीसरे दिन कथा वाचक शौनेंद्र कृष्ण शास्त्री वत्सल महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा में भगवान कपिलदेव संवाद धुव्र चरित्र भरत प्रसंग व प्रह्लाद चरित्र व सती चरित्र का वर्णन किया।
बिदापाथर (जामताड़ा) : क्षेत्र की सिमलडूबी पंचायत के बड़वा गांव स्थित राधा गिरिधारी मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह प्रवचन के तीसरे दिन कथा वाचक शौनेंद्र कृष्ण शास्त्री वत्सल महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा में भगवान कपिलदेव संवाद, धुव्र चरित्र, भरत प्रसंग व प्रह्लाद चरित्र व सती चरित्र का वर्णन किया। कथा वाचक ने कहा कि जहां भागवत कथा होती है, वहां स्वयं भगवान विराजमान होते हैं। भागवत कथा श्रवण मात्र से ही किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। महापुरुषों को उनके आचरण से जाना जाता है।
ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि ध्रुव जो समस्त मार्ग निर्देशकों का मार्गदर्शक हैं। जो चल नक्षत्रों में स्थिर हैं, का विवाह संस्कार आदि शुभ कार्यो में स्मरण किया जाता है। इनका नक्षत्र मंडल परिक्रमा करता है। अविनाशी परमानंद स्वरूप हैं। भक्त प्रहलाद का चरित्र वर्णन करते हुए कहा कि हिरण्यकश्यप नामक दैत्य ने घोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से ऐसा वरदान प्राप्त किया कि वह न दिन में, न रात में, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न नर मार सके न नारी, न पानी में डूब कर मरने का वरदान प्राप्त किया था। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना दुश्मन मानते थे। वह निर्भय थे। हिरण्यकश्यप पुत्र प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनाएं देने लगे जबकि भगवान हमेशा प्रह्लाद की रक्षा करते रहे। अतत: भगवान विष्णु नरसिंह का रूप धारण किया व अत्याचारी दैत्य हिरण्यकश्यप को गोधूलि बेला में वध किया था। भागवत कथा को लेकर बड़वा सहित आसपास के गांव में भक्ति का माहौल व्याप्त है।
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