Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    करमदाहा में मेला की जगह पसरेगा सन्नाटा

    15 दिवसीय मेला में झूला मौत का कुआं रिकॉर्डिंग डांस ड्रेगन आदि मनोरंजन के साधन उपलब्ध थे।

    By JagranEdited By: Updated: Wed, 13 Jan 2021 06:54 PM (IST)
    Hero Image
    करमदाहा में मेला की जगह पसरेगा सन्नाटा

    नारायणपुर (जामताड़ा) : मकर संक्रांति पर करमदाहा दुखिया महादेव मंदिर प्रांगण में 15 दिवसीय ऐतिहासिक मेले के आयोजन पर अब तक संशय है। 15 जनवरी से विधिवत रूप से मेले का आयोजन आरंभ होता था। इस बार अब तक न मेला के लिए नीलामी की प्रक्रिया शुरू हुई न कोई तैयारी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मेला का पंद्रह दिनों तक आनंद उठाने वाले व कारोबारियों में भी मायूसी है। वर्ष 2019 में करमदाहा मेले की बंदोबस्ती नारायणपुर अंचल कार्यालय में छह लाख 70 हजार रुपये की ऊंची रकम में हुई थी। 2020 में मेला का डाक जिला परिषद कार्यालय जामताड़ा में 12 लाख 70 हजार रुपये तक चढ़ा। इस वर्ष कोरोना के कारण मेला का डाक नहीं हुआ है। 15 दिवसीय मेला में झूला, मौत का कुआं, रिकॉर्डिंग डांस, ड्रेगन आदि मनोरंजन के साधन उपलब्ध थे। दुकान लगाकर लोग अच्छी खासी कमाई भी करते थे परंतु इस वर्ष मेला नहीं लगने की सूचना से लोग निराश है। मेला में सुरक्षा के मद्देनजर प्रशासन की ओर से सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की जाती थी। मेला में दंडाधिकारी की नियुक्ति के साथ ही पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल को भी यहां तैनात किया जाता था। मेला में बिकने वाला लोहा का समान, खाजा काफी प्रसिद्ध हुआ करता है। मेला का खाजा का वजन एक से दो किलो तक होता है। पूर्व में खाजा का वजन और भी ज्यादा हुआ करता था ेलेकिन समय बीतने के साथ खाजे का आकार छोटा होता गया है। फिर भी मेला आए लोग इसे अपने साथ ले जाना नहीं भूलते थे।

    पानी की दह से दुखिया महादेव शिवलिग की हुई थी खोज :

    दरअसल, कर्ण नामक एक राजा 17वीं सदी के मध्य में शिकार खेलने के लिए करमदाहा आए थे। तब उन्होंने बराकर नदी के पानी की दह से दुखिया महादेव शिवलिग की खोज की थी। तब इस स्थान का नाम कर्णदाहा रखा गया था। बाद में नाम परिवर्तित करके करमदाहा कर दिया गया है।