संस्कारशाला : मित्रता की कसौटी
जामताड़ा प्रतिस्पर्धा के इस युग में जहां सभी एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगाए बैठे हैं
जामताड़ा : प्रतिस्पर्धा के इस युग में जहां सभी एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगाए बैठे हैं, हर एक रिश्ता सिर्फ आकांक्षाओं की पराकाष्ठा को प्राप्त करने के लिए बेचैन है वहीं एक रिश्ता ऐसा भी है जो सच्चे अर्थों में व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ने का काम करता है तथा स्वयं जो दूसरों के लिए न्योछावर करने में तनिक भी नहीं हिचकता है। वह मित्रता है। यह वह अमूल्य निधि है जो सभी रक्त संबंधी रिश्तों की सर्वोच्चता पर विराजमान तो है ही साथ ही साथ यह वह संजीवनी है जो मानवता एवं समर्पण का जीता जागता सागर है जो खुद तो प्यासे रहता है लेकिन दूसरे की पिपासा को हमेशा शांत करता है।
पौराणिक परिप्रेक्ष्य में राम- विभीषण, कृष्ण- अर्जुन, कर्ण- दुर्योधन, या फिर -कृष्ण की मित्रता सिर्फ जगजाहिर ही नहीं है, वरन यह भावी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक एवं प्रेरक का कार्य करता है। रामचरितमानस की विभिन्न उद्धरणों में मित्रता की कसौटी प्रस्तुत की गई है-कुपथ निवारी सुपथ चलावा। गुण प्रकटै अबगुन्हि दुरावा।। अर्थात सच्चा मित्र वही है जो हमें गलत रास्ते से निकालकर सच्चे रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है एवं अवगुण छुपाकर गुणों को प्रकट करता है। यानि कहने का तात्पर्य है कि सबके सामने अवगुण दिखाकर हमें लज्जित नहीं करता वरन परिस्थिति अनुसार उसका निराकरण भी करता है। मित्र की महत्ता इतनी अधिक है कि नर तो नर देव भी इसके लिए लालायित रहते हैं। तभी तो कहा गया है कि मूर्ख सेवक कंजूस राजा, कुलटा स्त्री एवं कपटी मित्र सब शूल के समान होते हैं केवल एक सच्चा मित्र ही है जिस पर हम अपना विश्वास करके सब कुछ इस पर न्योछावर कर सकते हैं। लेकिन आज के वर्तमान परिपेक्ष में देखें तो सिर्फ यही प्रतीत होता है कि देवता, आदमी मुनि सब अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु प्रेम करते हैं-सुर नर मुनि सब कै यही रीती। स्वारथ लागि करहि सब प्रीती।।
अब यह प्रश्न उठता है कि मित्रता का आखिर मापदंड क्या हो, कैसे हम एक सच्चे मित्र का चुनाव कर सकते हैं, मित्रता की कसौटी क्या हो? अगर हम जंगल में गए दो मित्रों एवं एक भालू की कहानी के आधार पर यह निष्कर्ष निकाले तो हमें यही पता चलता है कि विपत्ति में जो साथ दे वही सच्चा मित्र है अथवा कोई नहीं। अर्थात जन्म से व्यक्ति रिश्तों एवं संबंधों के धागे से बंधा होता है लेकिन उन धागों की कसावट इतनी कमजोर होती है कि समयारंतराल में या तो वो टूट जाती है या फिर गांठ पर गांठ लगते जाती है। फिर एक मित्रता की डोरी है जो बचपन जवानी और बुढ़ापा हर जगह साथ निभाती है। हमने तो यहां तक देखा है कि एक बेटा कहता है कि मेरे लिए मेरे पापा सबसे अच्छे मित्र हैं। एक बेटी कहती है मेरी मम्मी सबसे अच्छी दोस्त है। अर्थात जन्म के रिश्ते भी तभी दीर्घायु होते हैं जब वह मित्रता की कसौटी पर कसा जाता है। मनुष्य को कदम- कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसे वह अकेले कदापि नहीं कर सकता। उसे कुछ ऐसे ही मित्रों की आवश्यकता पड़ती है जो सुख-दुख, कठिन-सरल, अनुकूल- प्रतिकूल, विभिन्न परिस्थितियों में एक सार्थक सहयोगी की तरह खड़ा रहे तथा विकट समय में अपने सुझावों से उसके पथ को सरल और सुगम कर दे।
सच्ची मित्रता यदि हमारा कल्याण कर सकती है तो बुरी मित्रता हमें गर्त में गिरा भी सकती है। यदि उसके सुझाव एवं कर्म विनाशकारी है तो व्यक्ति अपना सर्वस्व गवां भी सकता है। अत: हमें मित्र के चुनाव में समझदारी बरतनी होगी। हमें जल्दबाजी या क्षणिक स्वार्थ में पड़कर किसी ऐसे व्यक्ति को मित्र कदापि नहीं बनाना है जो समय पर हमारा साथ छोड़ दे या हमारा नुकसान करें। गुरु के साथ कपट एवं मित्र के साथ छल करने वाला प्रभु के क्रोध का भागी होता है तथा हमें इससे बचना चाहिए। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि मित्रता बहुत ही अनमोल है। जिसके जीवन में सच्चे मित्र हैं, उससे बड़ा भाग्यशाली कोई हो ही नहीं सकता। यह व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी है जो शाश्वत है तथा कभी नष्ट नहीं होता। धन तो समय के साथ खर्च हो सकते हैं लेकिन अच्छे मित्र के विचार व्यवहार एवं संस्कार चिरस्थाई शाश्वत एवं प्रेरणादायी होते हैं। मित्र जीवन के रोगों की औषधि होता है। यह जीवन का वह साथी है जो हर बुराई से में बचाता है। हमें भलाई की ओर बढ़ाने में साधन जुटाता है तथा पतन से बचाकर उत्थान के पथ पर लाता है। जिस प्रकार स्वाति की बूंद सीप के संपर्क में आने पर मोती और सर्प के संपर्क में आने पर विष बन जाता है, उसी प्रकार सत्संगति में रहकर मनुष्य का आत्म संस्कार होता है जबकि बुरी संगति उसके पतन का कारण होता है।
विशेष रूप से विद्यार्थियों को सत्संगति का महत्व समझना चाहिए क्योंकि वे परिपक्व अवस्था में होते हैं और कच्ची मिट्टी के समान उन्हें किसी भी अवस्था में ढाला जा सकता हैं। अत: इस उम्र में काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। जात-पात, ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा, अमीर गरीब इन सब से ऊपर उठकर हमें एक ऐसे सच्चे मित्र की तलाश करनी चाहिए जो सही अर्थों में हमारा मार्गदर्शन कर सके। मित्रता ईश्वर के द्वारा इंसान को दिया गया सबसे बड़ा वरदान है और हमें इसकी महत्ता समझनी चाहिए। तभी तो कहा गया है कैसे करूं शुक्रिया तेरी मेहरबानियां का मेरे रब, मुझे मांगने का सलीका नहीं आता और तू देने की हर अदा जानता है। तेरी दी हुई करदान्यो में एक मित्र ही मेरी जिदगी को गुलजार किए बैठा है।
वास्तव में एक मित्र को परिभाषित कर पाना बड़ा कठिन कार्य है एक विद्यार्थी के लिए सही मित्र का चुनाव एवं उससे शाश्वत रिश्ते बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है तथा जो विद्यार्थी इसकी महत्ता को समझते हैं वे जीवन के हर पथ पर अपने आप को आगे पाते हैं और इससे उनका जीवन काफी सुख में एवं औरों के लिए प्रेरणादायक साबित होता है।----अमरेंद्र कुमार सिंह, पीजीटी व्याख्याता सह पूर्व प्रधानाध्यापक, उच्च विद्यालय गेड़िया जामताड़ा।