सन 1916 से मिहिजाम में मां रक्षा काली की होती है पूजा
सन 1916 से मिहिजाम में मां रक्षा काली की होती है पूजा

सन 1916 से मिहिजाम में मां रक्षा काली की होती है पूजा
संवाद सूत्र, मिहिजाम (जामताड़ा) : प्रत्येक वर्ष चैत माह के मौके पर आयोजित मां रक्षा काली पूजा को लेकर तैयारी शुरू हो गई है। बढ़ई समाज के द्वारा शहर के कालीतल्ला में स्थापित मां रक्षा काली मंदिर में पूजा को लेकर समाज व स्थानीय लोगों ने बैठक व चर्चा का दौर शुरू हो गया है। रामनवमी के बाद पड़ने वाली शनिवार को पूजा की परंपरा है। इस वर्ष 16 अप्रैल को पूजा होनी है। पूजा के दो दिन पूर्व मां रक्षा काली के लिए महिलाओं का जत्था सात गांव भ्रमण कर मांगन की परंपरा को निभाता है। मांगन में जो भी सामग्री प्राप्त होगी वह मां के चरणों में प्रसाद रूपी अर्पित की जाएगी। मां काली की पूजा-अर्चना के उपरांत बली देने की परंपरा है। जो पूर्व काल से ही मां को प्रसाद के रूप में पाठा, मुर्गा व कबूतर की बलि दी जाती है।
कब और कैसे हुई मंदिर की स्थापना : जानकारी के अनुसार अंग्रेजों के शासन काल के समय वर्ष 1916 में मिहिजाम क्षेत्र के कुछ इलाकों में एक जैसी बीमारी महामारी के रूप में पांव पसार रही थी कोई नीम हकीम इसका उपचार करने में समर्थ नहीं हो रहे थे। लोग डाक्टर हकीम करते करते थक गए, लेकिन महामारी का प्रकोप खत्म ना हुआ। लोग भगवान के पास पूजापाठ करने लगे इसी दौरान मिहिजाम निवासी स्वर्गीय जग्गू मिस्त्री को सपने में मां काली दिखी। मां ने कहा कि कालीतल्ला स्थित महुआ के पेड़ के नीचे मेरी पूजा करो, सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। स्वर्गीय जग्गू मिस्त्री ने दूसरे दिन समाज के लोगों को अपने सपना की जानकारी दी। उसके बाद से उसी स्थान पर पूजा पाठ आरंभ की गई। धीरे-धीरे स्थानीय लोग व बढ़ई समाज के लोगों ने महुआ पेड़ के नीचे झोपड़ी नुमा मंदिर बनाकर नियमित पूजा शुरू की।
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