East India Regional Poetry Festival : आत्महत्या तो करते हो, मगर दूसरों को प्रमाण पत्र में क्यों फंसाते हो
एलबीएसएम कालेज में आयोजित पूर्वी भारत के क्षेत्रीय कविता उत्सव में 18 भाषा के कवियों ने अपनी भाषा में कविता पाठ किया। इसका हिंदी अनुवाद भी हुआ। बोडो की कवियित्री रश्मि चौधुरी ने आत्महत्या करने से पहले पत्र छोड़ने वाले लोगों पर तंज कसा।

जासं, जमशेदपुर : एलबीएसएम कालेज में आयोजित पूर्वी भारत के क्षेत्रीय कविता उत्सव के दूसरे सत्र में माटी, किसान, पर्यावरण, स्त्री-प्रश्न से संबंधित कविताओं से छात्र, साहित्यकार व अतिथि रूबरू हुए। दूसरे सत्र में संताली के साहित्यकार सह साहित्य अकादमी में संताली के संयोजक मदन मोहन सोरेन की अध्यक्षता में असमिया के उत्तम कुमार बरदलै, बांग्ला के कमल चक्रवर्ती, बोड़ो की रश्मि चौधुरी, अंग्रेजी की वुधरा राय, मैथिली के शिव कुमार टिल्लू, मणिपुरी के एम.ए. हाशिम, नेपाली के राजा पुनियानी, ओडिआ के सौभाग्यवंत राणा, हो के डोबरो बुडीउली व भोजपुरी में संध्या सिन्हा ने कविता पाठ किया। सभी ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में कविता पाठ किया तथा इसका अनुवाद भी पढ़कर सुनाया। बोडो कवियित्री ने कहा आत्महत्या तो करते हो मगर दूसरो को प्रमाण पत्र में क्यों फंसाते हो, क्यों लिखकर मौत को गले लगाते हो। असमिया कवि ने कहा शहर को सब पूछते हैं, मिट्टी को कोई नहीं पूछता।
कमल चक्रवर्ती पर्यावरण को लेकर बेहद बेचैन दिखे। वसुंधरा राय ने भी च्एडवाइस टू दूर्गाज् जैसी कविताओं में वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में स्त्री विरोधी प्रवृत्तियों का विरोध किया। शिवकुमार टिल्लू ने च्विहान गीतज् के जरिये यह संदेश दिया कि किसान थके हैं, हारे हैं फिर भी कहीं बैठे नहीं हैं। एस.ए. हाशिम ने च्रेत पर तेरा चेहराज् शीर्षक कविता का पाठ किया। राजा पुनियानी ने अपनी गहरे अर्थबोध वाली बाल कविताओं को बडे ही नाटकीय अंदाज में सुनाया, जिसका छात्रों ने बहुत आनंद उठाया।

जब न्याय और क्रांति की जरूरत हो तो कविता की जरूरत होगी : मित्रेश्वर अग्निमित्र
कविता उत्सव के तीसरे सत्र के अध्यक्ष प्रो. मित्रेश्वर अग्निमित्र ने कहा कि इस आयोजन के जरिए झारखंड में सांस्कृतिक इतिहास का एक पन्ना लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि वेदना ज्ञान और कविता के लिए जरूरी है। जो कवि नहीं हैं, कविता उनके भीतर भी होती है, उनके भीतर जो अनुभूतियां और भाव हैं, उनको मेहनत करके व्यक्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा अलग-अलग हो सकती है, पर कविता अलग नहीं होती, वेदना अलग नहीं होती। न्याय और क्रांति बिना कविता के नहीं होती। इस सत्र में संध्या सिन्हा ने कांठी तथा भगजोगनी के खिड़की शीर्षक कविताओं का पाठ किया। उनकी कविताएं स्त्री-प्रश्न से संबंधित थे। सुभाषचंद्र महतो ने कुरमाली भाषा की अपनी कविताओं को सुनाया। कुड़ुख भाषा की कवयित्री गीता कोया च्सिनगी देईज् और च्तेंगा बा तेंगाज् के माध्यम से आदिवासियों के गौरवगाथा कही और उस इतिहास के लिए कविता में जगह की अपेक्षा की। प्रो. लक्ष्मणचंद ने च्इहे सांच हेज् और च्बेटी के विदागरी गीतज्को गाकर पूरे माहौल को बेहद भावपूर्ण बना दिया- उठल डेग के जब डगर रोक ले, तोप-तलवार के नजर रोक ले, मत मान पर इहे सांच हे, याद जेकर जी जहर घोल दे। बोध मुुंडा की मुंडारी भाषा की रचनाओं में आदिवासी जनजीवन के सौंदर्य और श्रमिक जीवन की कठिनाइयों को व्यक्त किया। भुजंग टुडु ने अपनी संताली कविताओं में मानव सभ्यता और इतिहास की शाश्वत चिंताओं और प्रश्नों के प्रति श्रोताओं को संवेदित किया। उर्दू के शायर प्रो. अहमद बद्र ने गजलें कहीं, जिनको काफी तारीफ मिली।
50 साल बाद मिले दो कवि
एलबीएसएम कविता उत्सव में साहित्य जगत के दो विद्वान 50 साल बाद मिले। इस दौरान वे एक दूसरे से गले मिले। एक मैथिली के डा. विद्यानंद झा विदिक तो दूसरे हिंदी के प्रो. मित्रेश्वर अग्निमित्र। इस दौरान दोनों ने एक दूसरे का हाल-चाल भी पूछा।

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