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Narendra Kohli Died: साहित्यकार नरेंद्र कोहली का निधन, जमशेदपुर में पले-बढ़े थे कोहली

Narendra Kohli Died अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार डा. नरेंद्र कोहली का शनिवार देर रात दिल्ली में निधन हो गया। जमशेदपुर में यह खबर आग की तरह फैली जिससे पूरे शहर में शोक की लहर फैल गई। खासकर साहित्य से जुड़े लोग यह खबर सुनकर काफी मर्माहत हुए हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 17 Apr 2021 09:54 PM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 09:42 AM (IST)
Narendra Kohli Died: साहित्यकार नरेंद्र कोहली का निधन, जमशेदपुर में पले-बढ़े थे कोहली
डा. नरेंद्र कोहली की शिक्षा-दीक्षा जमशेदपुर में हुई थी।

जमशेदपुर, जासं। अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार डा. नरेंद्र कोहली का शनिवार देर रात दिल्ली में निधन हो गया। जमशेदपुर में यह खबर आग की तरह फैली, जिससे पूरे शहर में शोक की लहर फैल गई। खासकर साहित्य से जुड़े लोग यह खबर सुनकर काफी मर्माहत हुए हैं।

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डा. कोहली का बचपन से जवानी तक का सफर इसी शहर में बीता था। उनका जन्म छह जनवरी 1940 को अविभाजित भारत के संयुक्त पंजाब स्थित सियालकोट में हुआ था। भारत-पाक विभाजन के बाद 1947 में उनका परिवार जमशेदपुर आ गया था। यहां उनके पिता कदमा में रहते थे। उनकी स्कूली शिक्षा-दीक्षा भी यहीं हुई थी। जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज से हिंदी में स्नातक करने के बाद वे दिल्ली चले गए थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर व पीएचडी की। इसके बाद वे दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे और दिल्ली में ही बस गए। इसके बावजूद वे 2006 से प्रतिवर्ष बिष्टुपुर स्थित तुलसी भवन द्वारा आयोजित साहित्यिक सम्मेलन अक्षर कुंभ में आते थे। बाद में यह आयोजन तुलसी भवन से हटकर दूसरे स्थानों पर भी हुआ, इसके बाद भी जमशेदपुर आते रहे।

सोनारी में भाइ के यहां ठहरते थे

जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज में उनके सहपाठी रहे डा. सी. भास्कर राव फोन पर बात करते ही फूट-फूटकर रोने लगे। डा. भास्कर राव की पत्नी डा. सूर्या राव भी साथ पढ़ी थीं। बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग की अध्यक्ष डा. जूही समर्पिता ने कहा कि हाल में उनसे संस्कार भारती के एक कार्यक्रम में दिल्ली में मुलाकात हुई थी। जमशेदपुर के दर्जनों साहित्यकारों को डा. कोहली अक्सर फोन करते रहते थे। उनके भाई यहां सोनारी के आदर्शनगर में रहते थे। कोहली जी भी जमशेदपुर आगमन पर वहीं ठहरते थे। जब तक वे अक्षर कुंभ समेत अन्य साहित्यिक आयोजनों में यहां आते, सुबह से रात तक उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता।


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