Jhakhand के कोल्हान के इन आदिवासी युवाओं ने मेहनत कर भरी सफलता की ऊंची उड़ान
इन युवकों में हौसलों के पर लगे तो आसामान आ गया धरती पर। इन्होंने अभावों के समक्ष घुटने नहीं टेके। तमाम बाधाएं आयी लेकिन उसे नजरअंदाज कर बुलंद हौसले के साथ मंजिल की आेर बढते रहे। आज इनकी अपनी पहचान है। आप भी जानिए।
मनोज सिंह, जमशेदपुर। जब हाैसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का। इसी बुलंद हौसले व कड़ी मेहनत से कोल्हान के आदिवासी युवा धीरे-धीरे अपनी मंजिल की ओर उड़ान भर रहे हैं। यह कोल्हान के आधा दर्जन ऐसे युवाओं की कहानी है जो कभी एक-एक पैसे के मोहताज थे, लेकिन उनकी मेहनत व परिश्रम ने आज उन्हें ऊंचे मुकाम तक पहुंचा दिया। इसमें अजय कच्छप (डिप्टी कलेक्टर), रितेश तिग्गा (दारोगा), संजय निमा (लोको पायलट), सोमरा लकड़ा (बैंक मैनेजर) और अमर बरुआ रेलवे में टेक्नीशियन के पद पर योगदान दे रहे हैं।
पिता ने मजदूरी तो मां ने दूसरों के घर भोजन बनाकर पढ़ाया
पुलहातू बड़ाबाजार चाईबासा निवासी मेरे पिता बंधु कच्छप मजदूरी, तो मां पार्वती कच्छप दूसरों के घर भोजन बनाती थीं। किसी तरह परिवार का पेट चलता था। इसके बावजूद मेरे माता-पिता ने हार नहीं मानी और मुझे एक मुकाम तक पहुंचाया। आज मैं जामताड़ा में प्रशिक्षु डिप्टी कलेक्टर के रूप में काम कर रहा हूं। इसमें मेरे बड़े भाई संजय कच्छप का अहम योगदान है, जिन्होंने लाइब्रेरी के माध्यम से मुझे और मेरे अन्य साथियों को पढ़ने के लिए पुस्तक उपलब्ध कराई। सफल होने के लिए एक लक्ष्य को देखना और साधना होगा। उसे हासिल करने के लिए एकाग्र होकर कड़ी मेहनत करनी होगी। इसके बाद कोई ताकत सफल होने से नहीं रोक सकती।
- अजय कच्छप,प्रशिक्षु डिप्टी कलेक्टर, जामताड़ा
मां ने हड़िया बेचकर पढ़ाया, बनाया काबिल
बिरसानगर, जमशेदपुर निवासी बंधु लकड़ा टाटा स्टील से निकलने वाली छाई से लोहा चुनने का काम करते थे, जबकि मां हड़िया बेचकर चार भाई-बहनों का किसी तरह लालन पालन करती थी। घर की ऐसी स्थिति थी कि एक टाइम का खाना भी बहुत मुश्किल से मिलता था। मैं बचपन से ही पढ़ाई में तेज था। मां ने स्पष्ट कह दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए मेरे बेटे को काबिल बनाकर रहूंगी। मैट्रिक पास करने के बाद उन्हें संजय कच्छप का साथ मिला। जिनके सहयोग से मैंने बैंक की तैयारी की, और आज मैं अपनी मंजिल पा लिया। युवा कड़ी मेहनत करेंगे तो सफलता कदम चूमेगी।
- सोमरा लकड़ा, मैनेजर पीएनबी, कोलकाता
बहन ने रेजा का काम कर मुझे पढ़ाया
चाईबासा निवासी पिता बुधराम तिग्गा रिक्शा चलाकर मां मानो तिग्गा के साथ ही हम आठ भाई बहन, पांच भाई व तीन बहन का किसी तरह पेट पालते थे। मां मानो तिग्गा मजदूरी करती थी। पिता की तबीयत खराब हो गई, वह रिक्शा चलाने में असमर्थ हो गए। घर में एक वक्त की खाना मिलना मुश्किल हो गया। घर में एक-एक दाना व एक-एक रुपये के लिए मोहताज हो गए। मैं पढ़ाई कर रहा था, लेकिन पैसे के अभाव में किताब, कॉपी मिलना मुश्किल हो गया। मेरी पढ़ाई रुक न जाए, इसके लिए मेरी बड़ी बहन नीला तिग्गा रेजा का काम करने लगी। मैं दूसरों से किताब मांग कर पढ़ता था। मैट्रिक पास होने के बाद कड़ी-मेहनत कर अपनी पढ़ाई जारी रखी। आज में दारोगा बन गया। यदि सच्चे लगन व मेहनत से कुछ करने की इच्छा हो तो उसे ईश्वर भी पूरा करता है।
-रितेश तिग्गा, सब इंस्पेक्टर कौवाली थाना
पिता ने लकड़ी बेचकर मुझे बनाया काबिल
मनोहरपुर के नंदपुर निवासी अमर बरवा बचपन से ही कष्ट भरी जिंदगी जीने को मजबूर रहे। पिता जगन्नाथ बरवा खेती करते थे, लेकिन मां के अलावा आठ भाई बहनों का पेट पालना मुश्किल हो जाता था। खेती का समय खत्म होने पर पिता जंगल से सूखी लकड़ी जाकर बेचते थे, उससे जो पैसे मिलते थे, उससे मुश्किल से दो वक्त का खाना मिलता था। लेकिन पिता ने ठान ली थी कि बेटा को बढ़ा लिखाकर बढ़ा आदमी बनाएंगे। उन्होंने भी मन लगाकर किसी तरह दूसरे दोस्तों से किताब मांग कर अपनी पढ़ाई जारी रखी। इसी बीच संजय कच्छप द्वारा चाईबासा में स्थापित कुड़ुख पुस्तकालय के माध्यम से पढाई की। आज मैं रेलवे टेक्नीशियन के पद पर बहाल होकर माता-पिता व भाई बहनों का सपना को पूरा कर रहा हूं। यदि युवा मन में कुछ करने का हौसला रखें, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
-अमर बरवा, रेलवे टेक्नीशियन, बंडामुंडा
मजदूरी कर माता-पिता ने बनाया लायक
मेरे माता-पिता मजदूरी कर किसी तरह परिवार पालते थे। मेरे पिता कहा करते थे कि मजदूरी करके भी अपने बेटे को लायक बनाएंगे। वह पढ़ाई पर पूरा जोर देते थे। घर की गरीबी और मेरी पढ़ाई के लिए माता-पिता की मेहनत देखकर मैंने सोचा कि सरकारी नौकरी पाकर रहूंगा, चाहे इसके लिए मुझे 20 घंटे पढ़ाई करना पड़े तो भी करूंगा। मैंने भी ठान ली कि अब कुछ करना है। चाईबासा में पुस्तकालय खोलकर आदिवासी व गरीब मेधावी बच्चों को शिक्षा दिलाने वाली संस्था से संपर्क किया। मुझे लाइब्रेरी में रहकर पढाई करने की छूट दी गई। जमकर तैयारी की और लोको पायलट के रूप में चुन लिया गया। आदिवासी हो या अन्य गरीब बच्चे सभी को संदेश देना चाहता हूं कि यदि सच्ची लगन व मेहनत से कुछ करने की ठान लें, तो वह अवश्य पूरा होगा।
- संजय निमा, लोको पायलट चाईबासा