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    बांस की काठी से बनी अगरबत्ती क्यों नहीं जलानी चाहिए, क्या है इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Thu, 05 Aug 2021 12:41 PM (IST)

    हिंदू धर्म के अनुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है। वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ कर रखती है उसे भी बांस के वृक्षों के बीच में गाड़ते हैं ताकि बांस की तरह वंश भी सदैव बढ़ता रहे।

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    बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।

    जमशेदपुर, जासं। हम अक्सर शुभ (हवन या पूजन) और अशुभ (दाह संस्कार) कार्य या अनुष्ठान के लिए विभिन्न प्रकार के लकड़ियों का हवन करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी को जलाते हुए देखा है। नहीं ना।

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    भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक कि हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते हैं, लेकिन उसे चिता में नहीं जलाते हैं।

    हिंदू धर्म के अनुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है। वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ कर रखती है, उसे भी बांस के वृक्षों के बीच में गाड़ते हैं, ताकि बांस की तरह वंश भी सदैव बढ़ता रहे। बांस को वंश की संज्ञा से जोड़ा गया है। जमशेदपुर की आयुर्वेद विभाग प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बताती हैं कि जैन धर्म में तो बांस की काढ़ी या काठी से बनी अगरबत्ती जलाना सर्वथा वर्जित है। वे लोग धूप बत्ती का ज्यादा उपयोग करते हैं, जिसमें काठी नहीं होती है। अब तो गीली व सूखी धूप बत्ती प्रचुर मात्रा में बाजार में उपलब्ध है।

    जानिए क्या है इसके पीछे वैज्ञानिक कारण

     बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेड जलने पर लेड-ऑक्साइड बनाता है, जो एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है। हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है, यहां तक कि चिता मे भी नहीं जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज अगरबत्ती में जलाते हैं। अगरबत्ती के जलने से उत्पन्न सुगंध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है। यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है, जो श्वास के साथ शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगंध न्यूरो-टॉक्सिक व हेप्टो-टॉक्सिक भी श्वास के साथ शरीर मे पहुंचाती है। इसकी जरा सी उपस्थिति कैंसर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। हेप्टो-टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। शास्त्रों में भी पूजन विधान में कहीं भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता है। सब जगह धूप ही लिखा है, हर स्थान पर धूप, दीप, नैवेद्य का ही वर्णन है।

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